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________________ जो दीन दुःखी भय व्याकुल वा, प्राणों की भिक्षा मांग रहे । उनके दुःख दर्द मिटाने की, बुद्धि को करुणा भाव कहे ।। १९६ EXASTKHAREKKERॐ श्रीपाल रास नरपति पूछे ढूंबने रे, कहो ए किस्यो विचार रे चतुरनर, तव ते बोले कंपनो हो लाल। सेठे अमने विगोइया रे, लोमे थया खुवार रे चतुरनर, कूड़े कपट अमे केलव्यु हो लाल ॥२२॥ तब राजा रासे चड्या रे, बांधी अणाव्यो सेठ रे चतुरनर, डूंब सहित हणवा धर्या हा लाल । तव कुंवर आड़ो वल्या रे, छोडाव्यो ते सेठ रे चतुरनर, उतम नर एम जाणीये हो लाल ॥२३॥ निमित्तियो तव बोलियो रे, सांचु मुज निमित्त रे चतुरनर, ए बहु मातंग ना धणा हो लाल । मातंग कहिये हाथिया रे, तेहनो प्रभु बड़ चित रे चतुरनर, ए राजेसर-राजिया हो लाल ॥२४॥ निमित्तिया ने नृप दिये रे, दान अने बहुमान रे चतुरनर, विद्यानिधि जग मां बड़ा हो लाल | कुंवर निज घर आविया रे, करतां नवपद ध्यान रे चतुरनर, मयणा त्रणे एका मली हा लाल ॥२५॥ बड़ी दुकान, फीके पकवान : वसुपाल ने बिगड़ कर कहा--प्रधानजी ! इसी समय इन नटों को कारावास में बंद कर दें। बुढ़ा नट कांपने लगा। उसने राजा के पैरों में लोट, गिड़गिड़ाते हुए कहा, "हजूर ! मेरे मालिक, मैं बाल-बच्चेदार हूँ । विना मौत मर जाऊंगा। क्षमा करें; मैंने सो जहाजबाले बनिये के कहने से ही इस थगीधर को झूठा कलंक दिया है। राजा की आँखे चड़ गई, उन्होंने उसी समय सेठ और नट परिवार को प्राणदण्ड की आज्ञा दे दी। चाण्डाल उन्हें धक्का मारते हुए, शूली की ओर ले चले । राजसभा में चारों ओर कानाफूसी होने लगी। वाह रे ! वाह, बड़ी दुकान फीके पकवान । श्रीपालकुंबर से यह दृश्य देखा न गया। उन्होंने वसुपाल से कहा, मेरा आपके यहाँ संबंध होने का सारा श्रेय इन धवलसेठ को है । श्रीमानजी ! ठोकर लगने से ही तो मानव की आँखें खुलती हैं। संभव है, ये लोग आज नहीं कल ठिकाने आ जाय । मेरा आप से यही अनुरोध है कि आप इन सभी स्त्री-पुरुषों को एक बार अपना मानव भव सफल करने का अवसर प्रदान कर अभयदान दें। वसुपाल कुंवर का गुणानुराग, दयालु स्वभाव देख चकित हो गये। उन्हें अपने जमाई की बात को मान देना पड़ा ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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