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नही पाप करे जगमें कोई. प्राणी कोई ना दुग्ख पाये। जामुन बने कर्मों से, यह शुभ मैत्रो भावना कहलाये ।। १९४ ARRER **
*** श्रीपाल रास कुंवर ने नरपति कहे रे, प्रगट कहो तुम वंश रे चतुनर, जिण सांसो दूर टले हो लाल । कहे कुंवर किम उच्चरे रे, उत्तम निज परशंस रे चतुरनर, कामे कुल ओलखावशुं हो लाल ॥१५॥ सैन्य तमारु सज्ज करो रे, मुज कर दो तलवार रे चतुरनर, तब मुज कुल प्रकट थशे हो लाल, माथु मुडाव्या पली रे, पूछे नक्षत्र वार रे चतुरनर, ए उखाणो सांचव्यो हो लाल ।।१६।। अथवा प्रवहण मां अछे रे, दाय परणी मुज नार रे चतुरनर, तेडी पूछो तेहने हो लाल | तेह कहेशे सवि माहरो रे, मूल थकी अधिकार रे चतुरनर, इणी परे कीजे पारखं हो लाल ।।१७।। परिचय तलवार देगी :
वसुपाल ने सोचा, “विना विचारे जो करे सो पाछे पछताय |" राजकुमारी का कहना ठीक ही है। केवल नटों के कहने से ही में यह कैसे मान लूं कि थगीधर अछूत है। वसुपाल-थगीधर ! आप अपना कुछ परिचय देंगे? श्रीपालकुंवर ने तलवार खींचकर कहा-श्रीमानजी! अब आपकी नींद खुली? आप इसी समय अपनी सेना ले मैदान में आइयेगा, मेरा परिचय मुंह नहीं यह तलवार देगी। मुंड मुंडाकर नक्षत्र वार क्या पूछना ? वसुपाल को मौन देख, कुंवर ने फिर कहा-श्रीमान्जी ! संभव है, यदि आपको अकारण रक्त-पात से कुछ संकोच हो, तो एक और उपाय है। सेठ के जहाजों में आई हुई मेरी दो स्त्रियाँ हैं, आप उन से मेरा परिचय पूछियेगा | अपने मुंह अपनी प्रशंसा कर " मियां मिट्ठ" बनना उचित नहीं । तेहने तेडवा मोकल्या रे, राये निज परधान रे चतुरनर, ते जइने तिहां विनवे हो लाल । तव मयणा मन हरखिया रे, पामी आदर मान रे । चतुरनर; सही कंते तेडाविया हो लाल ॥१८॥ बेसी स्यण सुखासने रे, आव्यां राय हजूर रे चतुरनर, भूपति मन हरखित थयु हो लाल; नयणे नाह निहालतां रे, प्रकटयो प्रेम अंकूर रे चतुरनर, साचे झूठ नसाडियो हो लाल ||१९||