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________________ करुणा है जो पर दुःख नाशे, मैत्री है जो परहित सोचे । पर सुख में तुष्टि है प्रमोद, मध्यस्थ उपेक्षा परदोष । हिन्दी अनुवाद सहित ** * * ** ** १९३ मुज निमित्त झढू नहीं रे, सुणजो सांची वात रे चतुरनर, ए बहु मातंग नो धणी हो लाल। राय अस्थ समझे नहीं रे, कोप्यो चिते घात रे चतुरनर, कुंवर निमित्तिया उपरे ह लाल ॥१२॥ ते बेउ जणने माखा रे, राये कीध विचार रे चतुरनर, सुभट घणां तिहां सज्ज किया हो लाल। मदनमंजरी ते सुणी रे, आवी तिहाँ ते वार रे चतुरनर, रायने इणी परे विनवे हो लाल ॥१३॥ कान बिचारी कीजिये रे, जिम नपि होम उपहास रे चतुरनर, जग मां जश लहिये घणु हो लाल । आचारे कुल जाणिये रे, जाईये हिये विमास रे चतुरनर, दुर्वल कन्ना न होइये हो लाल ॥१४॥ कान के दुर्बल न बनें : वसुपाल, बुढ़िया को रोती बिलखती देख, चुस्त हो गये । हाय ! " उतावला सो वाचला" मैंने मदन को हुवा दी। अरे । युवक की जात पात पूछते क्या देर लगती थी ? केवल मुंह ही तो हिलाना था | जात गंगा मुझे क्या कहेगी ? राजा की आंखों से अंगारे बरसने लगे । वसुपाल-प्रधानजी ! बम्मन कहां है ? उसे इसी समय बुलाओ | पंडित-राजन ! जय हो, "तप तेज वृद्धिः" । वसुपाल–राजन ! वृद्धि या नाश ? बगल में पत्रा (पंचांग) दवा हमें भ्रष्ट कर दिया। याद रखो: अब तुम्हारी कुशल नहीं। पंडित ने अपनी जनोई की दुहाई देते हुए कहा-राजन ! “निःसंदेह, यह युवक मातंग नहीं, मातंग-पति है।" यसुपाल-पांडे ! बस चुप रहो। अधिक न बोलो । प्रधानजी ! सेनापति से कहो, "इसी समय शीघ्र ही, बम्मन और नवयुवक को घोड़ों की टाप से उड़ा दिया जाय । " चारों ओर सभाटा छा गया । वसुपाल के सामने कोई बोल न सका । एक विद्वान पंडित की दुर्दशा होती देख मदनमंजरी ने दौड़ कर अपने पिता से कहा-कृपया आप किसी के कहने में न लगें। जनता व्यर्थ ही अपना उपहास करेगी। मुझे प्राणनाथ के आचार, विचार और सहवास से पूर्ण विश्वास है, कि आप क्षत्रिय वंश के ही हैं ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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