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________________ सु कुमार नेमिनाथ का बल, भाममा भूले नही। अन्यत्र ऐसे बार बालक, आज तक जन्में नहीं। १९२**SHAHA RASHAR श्रीपाल रास धनदासेठ के पुत्र इलाकुंवर ने एक नटी के रूप रंग पर लुभा कर अपने कुल और मातापिता को ठुकरा दिया था किन्तु एक श्रीमंत की हवेली में एक मुनि को आहार लेते देख उन्हें अपने शुद्ध स्वरूप-उपादान का लक्ष्य आते ही, उनका बेड़ा पार हो गया । आत्मा के शुद्ध स्वभाव का ही नाम "उपादान" है। पर पदार्थ के अनुकूल संयोग को ज्ञानी "निमित्त" कहते हैं। "आतम भावना भावतां रे, जीव लहे केवल ज्ञान रे ।" थाणा के सम्राट यसुपाल कला के बड़े पारखी थे। सम्राट ने कहा, नटराज ! अब तो तुम्हारा बुढ़ापा है । क्या अब भी तुम्हारा मन न भरा ? वास्तव में तुम्हारा कला पर अच्छा अधिकार है। कहो क्या इच्छा है ? नद - सरकार ! पैसा बटोरते कटोरते तो मेरी कमर झुक गई। अब तो “मान का पान भला ।" सम्राट का संकेत पाते ही श्रीपालकुंधर पान का थाल ले, आगे बढ़े । नटराज उन्हें घूर घूर कर, ऊंचा नीचा हो देखने लगा। कुंवर-याचा ! इधर आओ । बाबा का नाम सुनते ही, नट ने दबे स्वर में कहा-अरे ! बेटा तू यहां कहां भूला पड़ा ? नट ने चिल्ला कर कहा | ओ...री बबुआ की मां !! तोर बबुआ तो जे रया | बुढ़िया कुंवर के गले लग कर, रोने लगी। नट परिवार के स्त्री-बच्चों ने कुंवर को चारों ओर से घेर कर ऐसा नाटक रचा कि मानों वह सचमुच उनका पुत्र ही हो। नटराज ने सम्राट से कहा-अन्नदाता ! यह मोढ़ा हमने रूठ, घर से चुपचाप कहीं चल दिया था। आज इसे आपकी सभा में पाकर हमारा हृदय बांसो उछल रहा है। नारायण ! नारायण !! भगरान, आपका भला करे। हमें बेटा नहीं आंख मिली। सरकार ! इम जन्म भर आप के गुण न भूलेंगे । गजा मन चिंते इस्यु रे, सुणी तेहनी वाव रे चतुरनर, वात घणी विरुई थई हो लाल । एह कुटुंब सवि एहनुं रे, दीसे पस्तस्ख, साचरे चतुरनर, धिक मुज वश विटालियों हो लाल ॥१०॥ निमितियो तेडावियो रे, मे तुज वचन विशास रे चतुरनर, पुत्री दीधी पहने हो लाल। किम मातग कयो नहीं रे, दीधो गले पाशरे, चतुरनर, निमित्तियु बलतुं कहे हो लाल ॥११॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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