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लव कुश तथा अभिमन्यु से थे वीरवर बालक यहां रण शौर्य लख जिनका चकित थे देव सुर पालक यहां ॥ हिन्दी अनुवाद सहित **
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कहे अम दीजिये रे, मोहत वधारी दान रे चतुरनर, मोहत अमे वतुं घणुं हो लाल । तव नरपति कुंवर कने रे, देवरावे तस पान रे चतुरनर, तेहनुं मोहन वधाखा हो लाल ॥ ५ ॥ पान देवा जब आवियो रे, कुंवर तेहनी पास पास रे चतुरनर, हसित वदन जोतो हंसी हो लाल । बड़ो डूंब विलगो गले रे, आणी मन उल्लास रे चतुरनर, पुत्र आज भेटवो भलो हो लाल ॥ ६ ॥ एहवे आवी बड़ी रे, शेई लागी कंत्र रे, चतुरनर, अंग अंगे भेटती हो लाल । बहेन थई एक मली रे, आणी, मन उत्कंठ रे चतुरनर, वीरा जाऊँ तुम भामणे हो लाल ॥ ७ ॥ एक कहे मुज माउलो रे, एक कहे भाणेज रे चतुरनर, एवड़ा दिन तुम कहां रह्या हो लाल । एक काकी एक फई थई रे, देखाड़े घणं हे रे चतुर नर वाट जोतां हता ताहरी हो लाल ॥ ८ ॥ ब कहे नर रायने रे, ए अम कुल आधार रे चतुरनर, रीसाई चाल्यो हतो हो लाल । तुम पसाये भेलो थयो रे, सवि माहरो परिवार रे चतुर नर, भाग्यां दुःख विछोहनां हो लाल ॥ ९ ॥ नटों का षड़यंत्र :
संगीत एक मोहिनी मंत्र है। नटराज की ढोलक का शब्द सुनते ही, चारों ओर स्त्री-पुरुष, बच्चों की भीड़ लग गई। राजमहल के सामने, मैदान में बैठने की जगह नहीं । आज नट परिवार अपने दुगुने उत्साह से उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन कर रहा था । उनके गले के माधुर्य ताल लय और हास्य रंग देख जनता मंत्रमुग्ध हो गई। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ चांदी बरसने लगी। रुपये पैसों का ढेर लग गया ।
श्रीपालकुंवर नटों का दृश्य देख मन ही मन कहने लगे-अरे ! बेचारे नट ( उदर पूर्ति, मान प्रतिष्ठा ) के पीछे प्राणों पर खेल रहे हैं, यदि इतना पुरुषार्थ उपादान (शुद्ध स्वरूप अन्तर आत्मा) की ओर मोड़ देते, तो ये सुखी हो जाते ।