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हे नाथ ! आंखों देखते मौन क्यों हो ले रहे। क्या पापियों को पाप का विभु ! भोगने फल दे रहे । १९० NEARSHASTRA श्रीपाल रास डूंब कहे स्वामी सुणो रे, करश्यां ए तुम काम रे चतुरनर, मुजगे माहरो गानो हो लाल के लवशुं कूड़ी कला रे, लेशुं परख्या दाम रे चतुरनर, साबासी देजो पछे हो लाल ॥३॥ न रहेगा बांस, न बजेगी बंसरी :
प्राचीन काल में मनोरंजन के लिये, नटों की एक विशेष गणना थी। ये लोग दो बांसों के बीच एक लंबी रस्सी पर अपने प्राणों की बाजी लगा कर, जनता को मुग्ध कर देते थे ।
एक दिन एक नद-परिवार गाता-बजाता कहीं धवलसेठ के द्वार पर आ निकला । उन्हें देखते ही, सेठ ने अपनी सफलता का एक नया उपाय ढूंढ निकाला। "न रहेगा बांस, न बजेगी बंसरी । " सेठ-नटराज! द्वार द्वार भटकने से कहीं दरिद्रता का अन्त होगा ? इस जन्म में तो आशा नहीं। तुम्हें मालो-माल बनना है ? नट- श्रीमान् के हाथ लंबे हैं। सेठ, हमारा एक काम करोगे ? नट, अवश्य तन-मन से ।
धवलसेठ-नटराज ! देखो ! डरना मत । निहाल हो जाओगे । " अच्छा, सुनो ! यहां थाणा नगर के सम्राट का एक थगीधर है । उसे शीघ्र ही राजा-प्रजा की दृष्टि से गिरा कर, पूर्णतया यह सिद्ध कर दो कि यह नवयुवक आपके ही परिवार में जाया उपना एक इंच है।" नट को मौन देख, सेठने दून उत्साह से कहा - अजी! चुप क्यों हो ? श्रम पूरा मिलेगा। एक लाख स्वर्ण मुहरों से कम न दूंगा। आप मुझे क्या समझते हैं ? और फिर उपाय भी सरल है। "आप राजसभा के द्वार पर गा बजा कर अपनी उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन करें। जब कि थगीधर पान बीड़ा ले, तुम्हारे निकट पहुंचे, आप सभी उसी समय उसके गले पड़ जाना | बस स्वर्ण मुहरें तथार है। नटराज, सेठ ! काम कम नहीं, प्राणों से खेलना है। कृपया हमारे श्रम के साथ पारितोषिक भी देना पड़ेगा। धवलसेठ-नटराज । आप विश्वास रखें । सब ठीक होगा। नट परिवार चलता बना। सेठन तकिये का सहारा लेते हुए, अपनी मंछों पर बल दे कहा-" सम्राट बसुपाल अछूत थगीधर को तोप के मुंह उड़ाये बिना न रहेगा।" डूंब मली सवि ते गया रे, रायनणे दरबाररे, चतुर नर, गाये उभा घूमता हो लाल | राग आलापे टेकशुं रे, रीझ्यो राय अपार रे चतुर नर; मांगो कांई मुख इम कहे हो लाल ॥४॥