SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्जदार आदमो दुनियां में बडा होना मुश्किल है। हिन्दी अनुवाद सहित * ** २१९ श्रवण कर महाराज प्रजापाल मन्त्र-मुग्ध हो गए। इस दृश्य ने राजा के हृदय में स्कृति और नवजीवन का संचार कर दिया ! उन्हें अब पूर्ण विश्वास हो गया है कि वे शीघ्र ही सम्राट होने के साथ ही पिता होने का भी गौरव प्राप्त करेंगे । साथ ही दोनों महारानियां जनता द्वारा आरोपित बांजपन के कलंक से मुक्त हो मां कहलायेगी। जन्मोत्सव चन्द्र अस्ताचल की ओर प्रयाण कर रहा था, आकाश, में कहीं कहीं नक्षत्र गण-तारे मुस्करा रहे थे । ताम्रचूड़ (मूर्ग) सोई हुई जनता को जागृत होने का संदेशा दे रहे थे। उपाकाल का मन्द मन्द सुवासित पवन नागरिकों को स्वस्थता एवं स्कृति प्रदान कर रहा था । पशु, पक्षियों के शुभ स्वर मंगल पटी के सूचक थे। पूर्व दिशा से सूर्य देव प्रजापाल की भावी संतान को शुभाशीर्वाद देने को ऊपर उठ रहे थे। आज मुबह से राज-प्रासाद में स्त्री पुरुषों की विशेष चहल पहल थी। कर्मचारीगण एवं नागरिकों के मुंह पर प्रसन्नता एवं अनूठा प्रेम झलक रहा था । दास दासियों-'महाराजाधिराज की जय हो! जयघोष के साथ सादर सेवा में निवेदन किया । कृपालु नाथ ! आज सूर्योदय की मंगल देला में दोनों राजमानाओं की कोख से एक एक कन्या रत्न का जन्म हुआ है। यह शुभ समाचार मुन महाराज __ प्रजापाल फूले न समाए तथा उन्होंने बधाई देने वाले मेवक संविकाओं को अपने शरीर के बहुमूल्य आभूषण उतार प्रदान कर दिये | बंदियो को कारागार मे मुक्त कर दिया गया। राज्य कर्मचारीगण, एवं नगर के गणमान्य प्रतिष्ठित मजनो का योग्य सत्कार कर, विद्यार्थियों को पुरस्कार बांटा गया ।। राज्य प्रासाद तोरण, ध्वजापताकाओ से सजाया गया, चारों ओर मंगल-गीत की स्वर लहरी व नगारों की ध्वनि उज्जैन के नागरिकों को जन्मोत्सव में सम्मिलिन होने का आह्वान कर रही थी। आज जनता को वर्षों की प्रतिक्षा के बाद ही सम्राट प्रजापाल के द्वार पर जन्मोत्सव की, पहली दीपावली देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। महाराज प्रजापाल ने सभा बुलाकर दोनों कन्याओं की नाम संस्कार विधि सम्पन्न कर एक का नाम मुरसुन्दरी व दूसरी का नाम मयणामुन्दरी रखा। राज माताएं दोनों कन्याओं का लालन-पालन बड़े मनोयोग से करती थी। वे समझती थी कि आरम्भ में बच्चे अपने बड़ों के उदाहरण में बहुत कुछ मीमने हैं। विशेष कर उनकी वाणी वर्नन और दिनचर्या का उन पर बहुत कुछ प्रभाव पड़ता है।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy