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________________ रुपये को सही रास्ते से खर्च को, न किसी से कर्ज लो, न दो । १४ HA RRIA श्रीपाल रास (२) प्रसूति-गृह के आस-पास गन्दी और विषैती और (ग) उत्पमा जाने वाली वस्तुएं न हो। मकान में अधिक सीत न हो। (३) प्रसूति गृह में रहने वाली स्त्रियां स्वस्थ हों एवं उनके वख स्वच्छ धुले हों, तथा उन्हें चाहिए कि वे प्रत्येक काम मनोपोग और स्वच्छता से करे । (४) प्रसूता और नव-जात शिशु की सेवा में सु-योग्य सेवाभावी दाई रखें । अज्ञान, स्वच्छन्द रोगीष्ट और सनकी दाइयों से काम न लें। सौभाग्यसुन्दरी और रूपसुन्दरी दोनों रानियां वृद्ध महिलाओं के मार्ग दर्शन के अनुसार ही आचरण करती थीं । प्रतिहारी-बहिन आज तुम घर न जाना । राजमाताएं कुछ अस्वस्थ हैं। दासीहाँ, यहिन ! कुछ ऐसा ही ज्ञात होता है। आज सुबह से उन्हें कष्ट और घबराहट मालूम हो रही है। भाग्य की कसौटी पर कौन नहीं कसा जाता, उस पर विरला ही खरा उतरता है। यह तो मानना पड़गा कि सच-मुच दोनों रानियों ने प्रसव-विज्ञान के नियमों का ठीक तरह से आचरण किया है । संभव है वे आज ही सकुशल सफल हो जायं । मालिन-सच है बहिन ! वास्तव में यह कड़ी परीक्षा का समय है। देखी कल की ही बात है। मेरी पोसिन मरते मरते बची। भगवान ने ही उसके नन्हें नन्हें बच्चों की लाज रखी ! अभी भी उसका जीवन संकट में है। प्रधान-वैद्या बहिनजी कहती थी कि इस अभागिन ने अपना मुंह वश में न रखा ! गर्भावस्था में कंकर, पत्थर, कोलसे, राख, मिट्टी और खट्टे नमकीन रूक्ष पदार्थ खा खा कर अनथ कर डाला; प्रकृति के विरुवाचरण कर मरणासन्न कष्ट को आमंत्रित किया । रसना (जिह्वा) की लोलुपता का ही पढ़ परिणाम हुआ कि बच्चे को काट काट कर बाहिर निकालना पड़ा । यदि विदुषी वैद्या का समय पर सहारा नहीं मिलता तो सारे शरीर में विष फैल जाता। जहां सर्वत्र विष व्याप्त हुआ कि फिर शेप क्या था ? निश्चित ही मृत्यु । कंचुकी-सम्राट अंतःपुर में पधार रहे हैं। दोनों रानियां अपने वस्त्रों को सम्भाल कर बोली-पधारें । दोनों रानियों की निर्बलता देख, प्रज्ञापाल ने कहा । देवियों ! लेटी रहो ! कष्ट न करो। फिर भी दीवार का सहार ले पलंग से नीचे उतर कर विनम्र शन्दों में आर्यपुत्र ! सु-स्वागतम् ! अशक्ति से दोनों के भाल पर पसीने की बिन्दु मोती सी चमक रही थी, आंखों में मादकता, ललाई थी। उनके मन्द स्वर में यह आकर्षण, ममता थी. जिसे
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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