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________________ जगती हमारी काल-दर में, गप्प यों हो जायगो । किर यत्न कितने भी करो. मिलने न फिर तो पायगी ॥ हिन्दी अनुवाद सहित १८७ अब जहाजों में चारों ओर कानाफूसी होने लगी । चक्रेश्वरी देवी के वचनों का स्मरण होते ही उन का हृदय जोरों से धड़कने लगा। उन्होंने उसी समय प्रमुख जहाज चालक को बुलाकर पूछा, जहाज किस ओर जा रहे हैं ? जहाज चालक - सेठ 1 घात टली - अत्र शीघ्र ही कोकण आ रहा है। कोकण का नाम सुनते ही, सेठ के हाथ-पैर ठर गये । उन्हें काठ मार गया । वे हिम्मत कर, बोले-चालकजी ! इसी समय जहाजों की दशा बदल दें, उन्हें शीघ्र ही उत्तर की ओर मोड़ लिया जाय। जी हजूर ! कह कर जहाज चालकों ने दिशा बदलने के लाख उपाय किये, किन्तु उनकी एक न चली । पवन के वेग ने जहाजों को कोकण के तट पर ढकेल ही दिया। श्रीमान् कविवर विनयविजयजी कहते हैं, कि यह श्रीपाल -रास के तीसरे खण्ड की तीसरी ढाल सम्पूर्ण हुई | मनोवांछित सफल करने का एक ही उपाय है, श्री सिद्धचक्र व्रत की आराधना । दोहा कोकण कांठे नागर्या, सवि वहाण तिण वार | नृपने मलवा मलवा उतर्या, सेठ लई आव्यो नरपति पाउले, मिलणा करे बैठो पासे रायने, तब दीठो देखी कुंवर दीपतो, हैये उपनी लोचन मींचाई गया, रवि देखी जिम नृप हाथे श्रीपाल ने, देवरावे सेठ भली परे ओलखी, चित्त थयुं है, है ! अारडो, एह किश्यो नाखी ती खारे जले, प्रकट थई परिवार ॥ १ ॥ रसाल । श्रीपाल ॥ २ ॥ | तंबोल | डमडोल ॥ ४ ॥ ते हूक | धूक ॥ ३ ॥ उतपात । सभा विसरजी राय जब, पहोतो महेल पूछयो एह तब सेठे पडिहार ने, एह गीधर कोण छे, नवलो दीसे तेह कहे गति एहनी, सुणतां अचरिज वात ॥ ५ ॥ मझार । विचार ॥ ६ ॥ कोय ॥ होय ॥ ७ ॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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