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कैसी बरा थी मेदिनी ! और भेद चर थे क्या कहैं ! इसको कहूँ यदि मानमर-कल स हम थे क्या कह ॥ ५८४ WARRRRRRBHASHAIR श्रीपाल रास शीयल यतन एहथीं थशे रे, दिन प्रते सरस सुगंध रे । जेह कुमीटे जोयशे रे, ते नर थासे अंध रे ॥२७॥ एम कही चक्केसरी रे, उतपतिया आकाश रे । सयल देवशुं पखिर्या रे, पहोतां निज आवाश रे ॥२८॥ तव उतपात सवि टल्या रे, वहाण चाल्या जाय रे । चिंता भागी सर्वनी रे, वाया वाय सुवाय रे ॥२९॥ जीव. विश्वासघात का कटु फल :
क्षेत्रपाल की सूरत देखते ही धवलसेठ और उनके कुटिल मित्र के पैर ठरे गये । देव ने कुटिल मित्र को पकड़ कर ऐसा पछाड़ा कि उसकी हडडी एक भी न बची, टूकड़-टुकड़े हो गये। यह देख सेठ गिड़गिड़ा कर सतियों के चरणों में लौटने लगे । देवी ! बचाओ !! शरणागत की रक्षा करो।
देवि चक्रेश्वरी, सेठ ! आज मैं तुझे विश्वासपात, कृतघ्नता का कटु-फल चखाये बिना कदापि न लौटती, किन्तु तुम्हें सती-शरणागत देख विवश हो, अभयदान देती हूँ। “विश्वासघात महापाप" भविष्य में कभी कृतघ्न न बनना । अन्यथा कुशल नहीं । मदनसेना और मदनमंजूषा की ओर मुड़कर मदनसेना ! मदनमंजूषा ! धन्य है । आपके दृढ़ पतिव्रता को । वास्तव में आदर्श नारी को पतिव्रत-धर्म प्राणों से भी प्यारा है । आज आपको देख मेरा हृदय फूला नहीं समाता है | धन्य है। आपकी में क्या सेवा करू ? श्रीपालकुंवर की दोनौ स्त्रियों को मौन देख | चक्रेश्वरी देवी ने उनके गले में दो हार डाल कर कहा । आप हृदय में अपने पतिदेव की जरा भी चिंता न करें। वे इस समय अपने नूतन सुसराल में राजकुमारी मदनमंजरी के साथ सकुशल हैं। अधिक नहीं आपको इसी मास में निःसंदेह श्रीपालकुंवर के प्रत्यक्ष दर्शन होंगे | इस देविक हार के प्रभाव से कोई भी आपका बाल बांका न कर सकेगा । यदि कामान्ध पर पुरुष आपको आंख उठाकर देखेंगे तो वे अन्धे बन लड़खडाते दिखाई देंगे। ___ भगवती चक्रेश्वरी उन्हें आश्वासन देकर आकाश मार्ग से सपरीवार अपने स्थान पर लौट गई उतपात शांत हुआ । जनता को नव जीवन मिला । जहाज बड़े वेग से आगे बढ़ने लगे। मित्र त्रण कहे सेठने रे, दीठी प्रतक्ष वात रे। चोथो मित्र अधर्मथी रे, पाम्यो वेगे घात रे ॥३०॥ जीवा में