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________________ थी आर्य जगती जो कभी मन मोहिनी भू सुन्दरा, लज्जा बचाने हाय ! अब वह शोवती गिरि कंदरा ।। हिन्दी अनुवाद सहित RRRRRR२ १८३ जहाजों में खलबली मच गई:____ कुटिल धवलसेठ का जादू सतियों पर न चला | उन्हें तो पूर्ण श्रद्धा और विश्वास था कि “ निर्बल के बल भगवान " | वे तो चुपचाप महामंत्र सिद्धचक्र का स्मरण करने लगीं। सेठ झेंप गए । सहसा जोरों से आँधी चली, आकाश में काली घटाएं छा गई। हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता था । जल संग्रह, जहाजों की पाले और खंभे नष्टभ्रष्ट हो गये। चारों ओर भयंकर उत्पात मच गया । गर्जते बादल और बिजलियां देख जहाजों में बड़ी खल-बली मच गई । जनता ने देखा, सामने एक भीमकाय श्याम चतुर्भुज डम...डम....डमरू बजाते, गर्जते हुए अनेक देवदेवियों के साथ क्षेत्रपाल चला आ रहा है। उसके हाथों में डरावना त्रिशूल, नरमुण्ड और चमकीली तलवार थी। उनके पीछे थे चौसठ योगिनी और बावन वीर । चारों ओर कौतुक और प्रकाश फैल गया | उस प्रकाश में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव की अधिष्ठायिका एक दिव्य शक्तिमान हाथ में चक्र लिये केसरी सिंह पर सवार हो आई । उसका नाम था देवी चक्रेश्वरी । हण्यो कुबुद्धि मित्रने रे, जिणे वांको मति दीध रे ।। क्षेत्रपाले तव ते ग्रही रे, खण्ड खण्ड तेनु कीध रे ॥२१॥ जीव. ते देखी बीहतो घणूं रे, मयणा शरण पइट्ठ रे । सेठ पशु परे ध्रजतो रे, देवी चक्कसरी दी? रे ॥२२॥ जीव. जा मुक्यो जीवतो रे, सती शरण सुपसाथ रे । अंते जईश जीवथी रे, जो मन धरीश अन्याय रे ॥२३॥ जीव. मयणाने चक्केसरी रे, बोलावे धरी प्रेम रे । वत्स काई बिता करो रे, तुम पियुने छे खेम रे ॥२४॥ जीव. मास एक मांही सही रे, तमने मलशे तेह रे। राज रमणीं ऋद्धि भोगवे रे, नरपति ससरा गेह रे ॥२५|| जीव. बेहुने कंठे ठवी रे, फूल अमुलख माल रे । कहे देवी महिमा सुणो रे, एहनो अति ही रसाल रे ॥२६॥ जीव.
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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