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पूर्वज हमारे कौन थे ? यह बैठ कर मोचो सभी । यह प्रश्न जीवन मंत्र है मिल कर सभी सोचो अभो ॥ हिन्दी अनुवाद सहित
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गया | इस अथाह सागर में अब उसका क्या पता लगे ।
श्रीपाल कुंवर के घात की बात सुनते ही उनकी दोनों स्त्रियां मदनसेना और मदनमंजूषा के हृदय पर बड़ा आघात पहुंचा। वे मुझाई लता सी मूर्च्छित हो भूमि पर ढल पड़ी । यह इय देख उनकी सखी सहेलियां चीख पड़ी। अरे ! दौड़ो दौड़ो ! उनका हृदय धड़कने लगा। चारों ओर दास-दासियों की भीड़ लग गई। किसी ने उनके मुँह पर जल eिer किसी ने कप पर वासित चन्दन का लेप कर उनके सांस की परख की । कोई हाथ से पंखा झलने लगी । पवन लगते ही उन्हें कुछ सुध आई । आँखे खोली, किन्तु उनके मृग नयन श्रीपालकुंवर को न देख केवल टिमटिमा कर ही रह गए । बेचारी वे करवटें बदल बदल कर विलाप करने लगी । हाय ! मा बाप को छोड़ प्राण पति का साथ किया। भगवान ! आज वे ही अनायास
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गए। अब हमें जीकर करना ही क्या है ? वियोगिनी का जीवन व्यर्थ है
इस अथाह सागर में समा
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rama faai वियो रे, कूड़ा करे विलाप रे । धवलसेठ शुं कीजे ए दैवने रे, किश्या दीजे शराप रे ॥ ९ ॥ जीव. दुःख सह्यां माणस कह्यां रे, भूख सह्यां जिम ढोर रे । धीरज आप न मूकिये रे, करिये हृदय कठोर रे ||१०|| जीव. मणि माणिक मोति परे रे, जेहनां गुण अभिराम रे । जिहां जाशे तिहां तेहने रे, मुकुट हार शिव नाम रे ||११|| जीव. व्यंग वचन एवं सुणी रे, मन त्रिते ते दोय रे । एह करम पणे कर्यु रे, अवर न वैरी कोय रे ||१२|| जीवधन रमणी नी लालचे रे, कीधो स्वामी द्रोह रे । मीठो थई आवी मटे रे, खांड गले फियूँ लोह रे ॥१३॥ जीव. शील हवे किम राखशुं रे, ए करशे उपघात रे । करीये कंत तणी परे रे, सायर झपापात रे || १४ || जीव. शहद लपेटी छुरी :
कामांध सेठ को वियोगिनी स्त्रियों के हृदय का क्या पता ? पति वियोग एक ठण्डी आग है । इस आगने हजारों भरे पूरे घरों को इयमशान का रूप दे, उन्हें मटिया-मेट