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जो त को काटा बोए, ताहि बो तू फूल । तो को फूल के फूल है, पाको है तिरसूल । हिन्दी अनुवाद सहित REKASARKARCH ॐ १७९
ए धन ने दोय सुन्दरी, एह सहेली साथ । परमेसर मुज पाधरूं, दीधुं हाथो हाथ ॥ ३ ॥ कूड़ी माया केलवी, दोय रीझवं नार | हाथे लई मन एहनां, सफल करूं संसार ॥ ४ ॥ दुःखिया थईये तस दुःखे, वयण सुकोमल रीति । अनुक्रमे वश कीजिये, न हीय पगणे प्रीति ॥ ५॥ धूर्त इम चित्तमां धरी, करे अनेक विलाप ।
मुखे गरे हयड़े इले, पाप निगोने आप ॥ ६ ॥ बिना दवा के पीड़ा मिटी:
धवलसेट-मित्र ! वाह रे, वाह ! अच्छा दाव मारा। बिना दवा के पीड़ा मिटी । अब तो यह कनक-कामिनी मेरी ही है । भाग्य से ही तो ऐसा अवसर हाथ लगता है । दीनों स्त्रियां पति विना जावेंगी कहाँ ? हमने श्रीपाल को ऐसी जगह ढकेला है, कि उसे समुद्र के मगर-मच्छ जलजन्तु मिनटों में चया गये होंगे | किसी को पता तक न लगेगा कि कहाँ क्या हुआ? हां! अब इनको वश करना है। जरा सोच समझकर काम लेना पड़ेगा | दुष्ट मित्र-सेठजी ! पर-स्त्री को प्रलोभन दे उसे फुसला कर अपने आधीन करना यह तो आपके बांए हाथ का खेल है। इस कला में आप बड़े कुशल हैं। सेठ का नाम जैसा धवल (निर्मल) था वैसा उनका जीवन नहीं। वे हृदय के मैले, महाकपटी ढोंगी थे। उन्होंने अपने कुकृत्य पर पर्दा डालने का उपाय सोच ही लिया ।
अपना छाती-माथा कूट कूट कर बांग दे, रोने लगे, किन्तु हृदय में रंजका अंश मात्र भी नहीं था ।
तीसरा खण्ड-तीसरी ढाल
(राग :- रहो रहो रथ फेरबो रे) जीव जीवन प्रभु किहां गया रे, दियो दरिसण एक वार रे । सुगुण साहेब तुम बिना रे, अमने कोण अधार रे ॥ जीव० ॥१॥