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________________ नीरज ( कमज) रहता नीर में, नहीं भोगते पात । सज्जन जन जग बीच ज्यों रहते हैं दिन रात ॥ हिन्दी अनुवाद सहित * * - १७७ । पताकाओं से सजाया गया । रत्न जड़ित स्वर्ण के बहुमूल्य वखालंकारों से हाथी, घोड़े, रथ पालकियाँ जनता को आकर्षित करने लगी । बालिकाएं अपने सिर पर स्वर्ण के मंगल कलश रख, मधुर स्वर से स्वागत गीत गाती हुई आगे बढ़ने लगी । सम्राट सुपाल अपने मंत्री मंडल और नागरिकों के साथ बड़े ठाठसे नगर के विशाल उद्यान में जा पहुंचे। सामने से श्रीपालकुंवर के आते ही जयधोप, शहनाइया और ढोल नगारों की ध्वनि से सारा आकाश गूंज उठा। फूल के द्वारों से कुंवर का वसुपाल कुंवर को देख फूले न समाए । वे उन्हें बड़े समारोह चढ़ा कर अपने राज महल में ले आए। जनता श्रीपालकुंवर का और ज्योतिषी की सचाई देख मंत्र मुग्ध हो गई । गला डक गया । के साथ हाथी के ओदे दिव्य तेज रूप रंग जीरे महारे जोशी तेड़ाच्या जाण, लगन तेहिज दिन आविशुं जीरे जी । जीरे माहरे देई बहुला दान, राय लगन वधावियुं जीरे जीं ||२०|| तेहिज रयणीं मांहि धूआ मदनमंजरी तणो, शये कर्यो विवाह, साजन मन उलट घणो गज रथ घणां भंडार, दीघां कर मेलावडे जइये महिमा देखी, सिद्धकने भामणे पडिया सायर मांहि, एकज दुःखनी यामिनीं बीजी रात्रे जोय, इणी परे परण्या कामिनी नृपे दीघां आवास, त्यां सुख भर लीला करे,, मदनमंजरी सुं नेह, दिन दिन अधिकेरो धरे,, ,, नृप दियेबहु अधिकार, कुंवर न वंछे ते ही ये थप गीधर आप, पान तणां बीड़ा दिये जे कोई अति गुणवंत, मान दिये नृप जेहने तेहने बीड़ा पान, देवरावे कुंवर कने चीजे खण्डे एह, बीजी दाल सोहामणी सिद्धचक गुण श्रेणि, भवि सुणजो विनये मणीं 27 "" 25 11 ”। ?? 27 " 35 "" "" :" 16 35 ?? " " " >> " 37 93 75 35 "3 + " ?? 11 17 " 71 35 59 , 12 "3 12 95 ,, | 35 "" "" " I ॥२१॥ ,, ||२३|| ॥२३॥ 75 ||२२|| I " 29 ,, ॥२५॥ I ॥२४॥ 1 ,, ॥२६॥ ,,। ॥२७॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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