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कर फूले नहीं समा रहे हैं । वह
जहा"
, ॥१४॥
दूर कहां नियरे कहां, होनहार सो होय । नरियल को जड़ सीचिये, फल में प्रकटे तोय ॥ १७६ * ** **
* * श्रीपाल रास वीर नवयुवक नींद में सोया हुआ मिलेगा। हां ! और भी स्पष्ट किये देता है, कि उस दिव्य नर-रत्न पर मूर्य के ढलने पर भी छांया स्थिर रहेगी। वही राजकुमारी मदनमंजरी के भाग्य का चमकता चांद होगा ।
प्रधानमंत्री ने श्रीपालकुवर से कहा- श्रीमानजी ! सचमुच आज हम आपके दर्शन कर फूले नहीं समा रहे हैं। वह पंडित नहीं भगवान था | अब आप कृपया नगर में पधार कर हमें कृतार्थ करें । यह अज्ञ उपस्थित है। कुंधर ने श्री सिद्धचक्र का स्मरण कर उसी समय वहाँ से प्रस्थान कर दिया । जीरे महारे आगल जई असवार, नृपने दिये वधामणी जीरे जी । ,, ,, सन्मुख आव्यो राय, लई दोलत घणी ,, ,, ॥१३॥ ,, ,, शणगार्या गजराज, अंबाड़ी अंबर अड़ी ,, ,,
,, घण्टा घूघर माल, पाखरमणि ग्यणे जड़ी ,, ,, ,, ,, सोवन मालित पलाण, बाला जी पणा ,, ,, ।
,, जोतरिया केकाण, स्थ जाणे दिनकर तणां ,, ,, ||१५|| ,, बेहड़ा धरी शीश, सामी आवे बालिका , ,। ,, मोती सोवन फूल, वधावे गुण मालिका , , ॥१६॥ " गज वाहन चक डोल, स्यण सुखासन पालकी , ,। , सांबेला में बद्ध. केतु पताका नवलखी , , ॥१७॥
,, वाजे बहु वाजिंत्र, नाचे पात्र ते पग पगे ,, , " , शणगार्या घर हाट, पाट सावद जगमगे जी , , ॥१८॥ " , एम महोटे मंडाण, पेसारो महोच्छव करे , " , राय सकल गुण खाण, कंवर पधराव्यो घरे , , ||१९||
सम्राट बसुपाल राजमहल की अटारी पर टहल रहे थे। थोड़े की हिन हिनाहट सुनते ही वे शीघ्र ही राज सिंहासन पर आकर बैठ गए । समाने से आता हुआ एक सबार, महाराजाधिराज की जय हो ! जय हो !! हजूर ! “वह पंडित नहीं भगवान है। उसे कोटी कोटी धन्यवाद हैं। सचमुच आज हमें एक चंपे के पेड़ के नीचे एक अति सुन्दर वीर नवयुवक मिला | " राजा ने प्रसन्न हो अनुचर का वस्खालंकार से सत्कार किया | थाणा नगर कलापूर्ण सुन्दर द्वार और रंग बिरंगी ध्वजा