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________________ यह तन कच्चा कुभ है. लिये फिरे है साथ । चक्का लगा, फूट गया कुछ न आया हाथ || हिन्दी अनुवाद सहित * १७३ यह श्रीपाल -रास के तीसरे खण्ड की पहली डाल संपूर्ण हुई । कविवर विनयविजयजी महाराज कहते हैं कि श्री सिद्धचक्र महामंत्र के स्मरण से श्रीपाल कुंवर पल में पैले पार हो गये । इसी प्रकार इस रास के पाठक और श्रोतागण भी सिद्धचक्र की आराधना कर भव सागर पार करें । दोहा कोकण कांठे उतर्यो, पहोंतो एक वन मांहि । थाक्यो निद्रा अनुसरे, चंपक तरुवर छांहि ॥ १ ॥ सदा लगे जे जागतो, धर्म मित्र कुवर नी रक्षा करे, दूर करें दावानल जलधर हुए, सर्प हुए फूलमान । पुण्यवंत प्राणी लहे, पग पग ऋद्धि रसाल || ३ || समरस्य अनरस्थ || २ || कोड़ी उपाय | कारण थाय ॥ ४ ॥ रान मां थाय । विष अमृत थई परिणमे पूव पुण्य पसाय ॥ ५ ॥ क कष्ट मां पाड़वा, दुर्जन पुण्यवंत ने ते सवे, सुखनां थलप्रकटे जलनिधि वचे, नयर एक भयंकर मगरमच्छ ने श्रीपालकुंवर को उलटने के लाख उपाय किये, फिर भी वह असफल रहा । सच है, प्रचल पुण्योदय से विष का अमृत, दावानल का सरोवर, सर्पों की फूलमाला, जल में थल, जंगल में मंगल होते देर नहीं लगती । दुर्जन अपना मुंह लपोड़ कर रह जाते हैं । प्रभाव से शीघ्र ही वहां वर्षों से हिंसक श्रीपाल कुंवर जल तरणी औषधी और महामंत्र सिद्धचक्र के गोता मार कर कोकण देश की थाणा नगरी के तट पर जा पहुंचे। जंतुओं के भय से समस्त यातायात बंध था फिर भी कुंवर के पैर बड़े वेग से आगे बढ़ते चले जा रहे थे । अन्त में वे थक कर एक चंपे के वृक्ष की चुपचाप लेट गये । वहाँ वन का मद-मंद सुगंधित पवन लगते ही उनकी गई। भयंकर अटवी में कुंवर का रक्षक था, एक भजनबल | छाया में आँख लग
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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