________________
पढ़ पढ़ के ज्ञानी हुए, मिटा नहीं तन ताप राम राम तोता रटे कटे न वन्धन पाप || हिन्दी अनुवाद सहित 66
१७१
ठहाका मार कर हँसते हुए कहा, यह कौन बड़ी बात है। इसे तो अपन मिनटों में साफ कर सकते हैं, किन्तु चाहिए आपका साथ सेठ-अजी ! आप चिंता न करें, यह जान-माल आप अपना ही समझे । दोनों ने बड़ी देर तक कानाफूसी कर निश्चित किया कि “ श्रीपाल को समुद्र में ही ढकेलना ठीक है । " " न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी " । जहाज के किनारे पर सड़े-गले रस्सों से एक छोटा सा मचान बन्धवा कर सेठ शिकार की ताक में श्रीपाल कुंवर के स्थान की और चल पड़े ।
सेठ को आते देख श्रीपालकुंवर ने आगे बढ़ उन्हें अपने पास बिठाया । कुटिल सेठ ने मुस्कराते हुए कहा - कुंदरजी ! सच-मुच सफल जीवन तो आपका है। आपके मेरे पर चिर स्मरणीय अनेक उपकार हैं फिर भी कहना पड़ेगा कि आप अभिमान के भूत से बाल बाल
हुए हैं। यह मेरे लिये अति ही लज्जा की बात है कि आप मुझे अपने पास बिठाते हैं। यदि सच पूछें तो मुझे सातबार अपनी नाक रगड़ कर आपके तलवे चाटना चाहिए । फिर भी मैं ऋणमुक्त नहीं हो सकता हूं ।
श्रीपालकुंबर सहृदय थे । उन्हें क्या पता कि यह शहद लपेटी छुरी है । " दगाबाज दूना नमे चीता, चोर, कमान " कुंवर ने सेठ का मुंह दबाते हुए, बस... बस आप ऐसी क्या बातें करते हैं । मैं कर ही क्या सकता हूं ? करते हैं मानव के शुभाशुभ कर्म । धवलसेठ ने श्रीपाल की पीठ ठोक कर धन्य है ! धन्य है !! बेटा वाह रे वाह ! "बड़ा बढ़ाई ना करे, बड़ा न बोले बोल । हीरा मुख से ना कहे, लाख हमारा मोल ।” हां ! अब मुझे याद आया | खलासी कह रहे थे कि आज सुबह से समुद्र में एक आठ मुंह का बड़ा भारी मगरमच्छ घूम रहा है, उसे देखने को ही मैंने विशेष प्रबंध करवाया है । संभव है, अब मंच बंध गया होगा | अब आप देर करेंगे तो फिर में नहीं जानता । मन की मन में ही रह जायगी । फिर आप मुझे दोष मत देना कि चार पैर सोलह आखें नहीं बताई | कुंवर कौतुकवश चल पड़े । छ....म छ म किंवाड़ की ओट में अन्दर से मदनसेना और मदनमंजूषा ने धीरे से कहा, प्राणनाथ ! हमारी दाहिनी आंख और भुजा फड़क रहीं हैं। आप कृपया इस चापलूस सेठ के चक्कर में न पड़ें। " विनाश काले विपरीत बुद्धिः " | इस पर कुछ भी ध्यान न दे, सेठ कुंवर को खींच ही गये । कुंवर मांचे ताम के, चढ्यो उतावलो रे, के चड्यो उतावलो रे । उतरियो तव शेठ के, घरी मन आमलो रे, के घरी मन आमलो रे || बिहु मित्रे बिहु पासे के दौर ते कापिया रे, के दौर ते कापिया रे । करतां हवा कर्म न, बीहे पापिया रे, न बीहे पापिया रे ।। १६ ।।