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पानी केरा बुर बुदा, यही इमारी जात । एक दिना छिप जावेंगे, ज्यों तारे परभात ।। १७०
- RRRRRRRRRRR श्रीपाल रास सेठ भी श्रीपालकुंवर का वैभव-धन और उनकी स्त्रियों के रूप-सौन्दर्य, पायलों की अंकार सुन अपनी पवित्र बुद्धि से हाथ धो बैठे । मित्र-सेटजी कह दूं ? क...ह....दूं ! बड़ा सस्ता सौदा है। मित्रने धीरे से सेठ के कान में कहा । " अपने शत्रु से मधुर-भाषण करो और घुल-मिल कर उसे साफ कर दो।" सेठ मारे हर्ष के उछल पड़े। बेसे कंबर पास के, विनय घणो करे रे, के विनय घणो करे रे। तूं प्रभु जीव आधार के, मुख इम उच्चरे रे, के मुख इम उच्चरे रे ।। पूरख पुण्य पसाय के, तुम सेवा मली रे, के तुम सेवा मली रे। पग पग तुम एमाय के, अम आशा फली रे, के अम आशा फलो रे ॥१२॥ जोतां तुम मुख चंद के, सवि सुख लेखिये रे, क सवि सुख लेखिये रे। राखे तुमारी वात के, विरुई देखिये रे, के विरुई देखिये रे ॥ कुंवर सघली वात ते, साची सद्दहे रे, ते साची सद्दहे रे । दुर्जननी गति भांति ते, सज्जन नविलहे रे, ते सज्जन नविलहे रे॥१३॥ जे वहाणनी कोर के, माचा बांधिया रे, के माचा बांधिया रे । दोर तणे अवलम्ब ते, उपर सांधिया रे, ते उपर सांधिया रे ।। तिहाँ वेसी ने सेठ ते, कुंवर ने कहे रे, ते कुंवर ने कहे रे । देखी अचरिजि एह के, मुज मन गह गहे रे, के मुज मन गह गहे रे॥१४॥ मगर एक मुख आठ के, दीसे जुजुआ रे, के दीसे जुजुआ रे । एवा रूप सरूप न, होशे न हुआ रे, न होशे न हुआ रे ॥ जोवा इच्छो साहेब के, तो आवो वही रे, के तो आवो वहीं रे । पछी काढशो वांक जे, कांई कयुं नहीं रे, जे कांई कह्यं नहीं रे ॥१५|| चार पैर सोलह आंखें :
सेठ ने अपने गले का हार, मित्र के हाथ में रख कर कहा, प्यारे, श्रीपाल को शहद लपेट बातें बना उल्लू बनाना तो मेरे बांए हाथ का खेल है । मैं इस कला में बड़ा निपुण हूँ। इसे यमपुर केसे पहुंचाना ? इसके जीते जी तो इन परियों की आशा नहीं । धूर्त मित्र ने,