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झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद । खलरु चना कालका, कुछ मुख में कुछ गोर ॥ हिन्दी अनुवाद सहित শএ ** १६९
उपराजि इणें ऋद्धि ते, काजे ताहरे रे, ते काजे ताहरे रे । धणी थाये भाग्यवन्त, कमाई कोई मरे रे, कमाई कोई मरे रे || करशुं इश्यो उपाय के, ए दोलत घणी रे, के ए दोस्त घणी रे । काने सुन्दरी दोष के चारो तुम तनी रे, के थाशे तुम तणी रे || ९ || जिम पामे विश्वास, मलो तिम एह शुं रे, मलो तिम एह शुं रे । मुखे मीठी करो बात के, जाणे नेह शुं रे, के जाणे नेह शु रे ।। मीठी लागी वात क, सेठ ने मन बसी रे, के सेठ ने मन वसी रे । आयो फीटण काल के, मती तेहनी खसी रे, के मति तेहनी खसी रे ||१०|| दूध ज देखे डांग, न देखे मांकड़ी रे, न देखे मांकड़ो रे । मस्तक लागे चोट, थाए तब रोकड़ो रे, थाए तब मांकड़ो रे ॥ गेगी करे कुपथ्य ते, लागे मीठडुं रे, ते लागे मीउडु रे । वेदना व्यापे जाम ते, थाए अनी रे, ते थाए अनी रे ||११|| बोल मेरे शेर क्या करना ?
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धवलसे को लज्जित देख भले तीनों मित्र तो अपने स्थान पर लौट गए, किन्तु एक धूर्त्त मित्र ने कहा – सेठजी ! सुना । माल खाए माटी का और गीत गाए पराए' बड़े उसदेशक बने हैं। घर की बिल्ली घर में ही म्याऊं । इन्हें क्या शहद लगा कर चाटें । ऐसे स्वार्थी मित्रों से क्या लाभ ! कुछ भी नहीं। आप इन धर्म-ठगों की बातों में न लगें । पाप पुण्य के पचड़े में न फंस, बस एक ही सिद्धान्त रखियेगा । "f धरजा, मरजा और बिसरजा " पैसे से पाप धोना बड़ी बात नहीं । आप मेरी बात मानेंगे क्यों नहीं, अवश्य। आप जरा भी चिन्ता न करें। श्रीपालकुंवर तो एक मजूर है ! मजूर | इसकी संपदा और कामिनी आप अपनी ही समझियेगा । इस की गुप्त चात्री लो मेरे पास हैं। सेठ के मुंह से लार टपक पड़ी। सेठ - वाहरे ! वाह, बोल मेरे शेर क्या करना ।
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बंदर दूध मलाई देखता है, डण्डा नहीं । भले रोगी लुक छिप कर चुप चाप अपथ्य-तेल खटाई खा ले, किन्तु उसका फल, सिवाय नानी दादी को याद कर रोने के और क्या हो सकता है ?