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रात गंवाई सोय कर, दिवस गंवाया | नर भव जन्म अमोल या, कौड़ो बदले आय । १६८ *** SHARMERA
श्रीपाल रास पर उपगारी एह के, जिस्यो जग केवड़ो रे, के जिस्या जग केवड़ो रे। दीठो प्रत्यक्ष जास के, महिमा एवडो रे, के महिमा एवडो रे ॥ ५॥ छोडाव्या दोय वार के, इगो तुम जीवन के, के हो तुम जीनतां रे । उगरिया धन माल जी, पासे ए हता रे, जो पासे ए हना रे ॥ तार्या थंभ्या वहाण, इणे आगले रे, इणे आगले रे। एहवो पुरुष रतन्न के, जग बोजो नहीं रे, के जग बोजो नहीं रे ॥६॥ करी एह शुं द्रोह जो, विरुओ ताकशो रे, जो विरुओ ताकशो रे । तो अण खूटे किहांइक के, अंते थाकशो रे, के अंते थाकशो रे ॥ भाग्य लाधी ऋद्धि, इणे जो एवड़ी रे, इणे जो एबड़ी रे। पडी कांई दुर्बुद्धि, गले तुम जेवड़ी, गले तुम जेवडी रे ।। ७॥ मृत्यु को निमंत्रण न दें :
मित्र-सेठ ! विश्वासघात महापाप । आप श्रीपालकुंवर का अनिष्ट कर मृत्यु को निमंत्रण न दें । क्या कल्पवृक्ष पर कुठाराघात करना उचित है ? कदापि नहीं। श्रीपाल अपने भजन चल और पुरुषार्थ से ही फला फूला है। ऐसा नर-रत्न आपको इंढने पर भी न मिलेगा। आज न मालूम क्यों आपकी मति भ्रष्ट हो गई है। याद रखियेगा ! पराई कनक-कामिनी पर आंख उठाना मानो धधकते अंगारों पर मुष्टिप्रहार करना है। ___क्या आप वे दिन भूल गये ? जब कि आप को बारकूल में ओंधे मुंह लटकना पड़ा था ? आप सम्राट कनककेतु के बंदी बने थे ? आपको पांच सौ जहाज रुकने पर नाक नाक रगड़ते हुए इसी लहो-पुरुष की शरण लेना पड़ी थी? परोपकार को भूलना पहापाप है। धन्य है ! महापुरुष श्रीपालकुंवर को, जिन की कृपा से आप श्रीमान् की लाज रह गई। मित्रों की करारी बातें सुन धक्लसेठ धरती खुरचने लगा। त्रण मित्र हित सीख ते, एम देई गया रे, ते एम देई गया रे । चोथा के सुण सेठ के, वैरी ए थया रे, के वैरी ए थया रे ॥ गणिये पाप न पुण्य के, लक्ष्मी जोडिये रे, के लक्ष्मी जोड़िये रे । लक्ष्मी होय जो गांठ, तो पाप विछोड़िये रे, के पाप विछोडिये रे ॥८॥