SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनके न मित्र शत्रु कोई, न अपने और पराये हैं । विषयों से दूर कषाय मुक्त, वे योगी महा कहाये हैं। १६६ 36**ARASH EKHAR श्रीपाल रास पड़ौसी जलकर तवा बन गए । कोई बेचारे अपने भाग्य और श्रम से ऊपर उठा दान पुण्य कर प्रतिष्ठा प्राप्त की तो समाज और परिवार के लोग उस पर ईपी और द्वेष की लाठियां लेकर टूट पड़ते हैं, कि इसे जड़ा मूल से साफ कर दो ! मेध गजेते देख समुद्र रसातल की ओर मुंह मोड़ लेता है । वनराजि को फलिफूली देख जवासा सूखने लगता है। हाथी ऊंचे पर्वत से अथड़ा कर अपने सुन्दर दांतोंसे हाथ धो बैठता है। ईपालु अपने ही दीपक से अपने घर में आग लगाता है । ईर्षा नागिन के चक्कर में फंसने वाले स्त्री-पुरुष रो रो कर हाथ मलते रह जाते हैं। आप दूसरे को फलते फूलते देख कभी मन में न जलें । धवल सेठ बड़े धनवान थे। फिर भी उनके नयनों में नींद, हृदय में शांति नहीं । । प्रतिवर्ष लाखों की प्राय झोने पर गी तो छ की परमार्थ कर सके। पैसे के आधीन थे । पैसे के आधीन होना, और पैसे को अपने आधीन रखना दूसरी बात है। दोनों में दिन रात का अन्तर है । पैसे के पूजारी, चिन्ता-ग्रस्त, निर्दयी, ठग, धोखेबाज, कंगाल बड़े मख्खीचूस होते हैं, समय आने पर वे विना मौत के बुरी तरह मारे जाते है । पैसे को अपने आधीन रखने वाले स्त्री-पुरुष बड़े सहृदय हंसमुख विनम्र और दानी होते हैं। वे समझते हैं कि लोभ महा पाप है, शाप है, ताप है । श्रीपालकुचर का भी यही उद्देश्य था, कि पेसा मेरे आधीन है, मैं पसे का पूजारी नहीं । पसे में शक्ति नहीं कि मानव को काल के गाल से बचा सके । पैसा मिलते ही उसका शीघ्र ही सदुपयोग कर लेना ही बुद्धिमानी है। पैसा आज है कल नहीं । तभी तो लक्ष्मी को चंचला कहा है। वे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, जिन मंदिर का निर्माण, जिर्णोद्वार और सद्ग्रन्थ प्रकाशन इन सात क्षेत्रों में खुले हाथ दान देते । यह देख धवलसेठ मन ही मन कुढ़ने लगता । अरे ! तू कल का नंगा भूस्खा आज दानवीर की दूम बन बैठा । मेरे सहज ही अई सो जहाज इथिया कर बरा लाट बन, रंगरेलियां कर रहा है । धवलसेठ श्रीपालकुंवर को दूर से घूर कर अपनी मूछों पर बट देते हुए मन ही मन बोला । वेटा ! अब तू बच नहीं सकता । याद __ रख ! अगर तुझे उठाकर समुद्र में न फेंक दूं तो मेरा नाम धरल नहीं। बस तु मरा कि फिर तो कनक कामिनी दोनों बंदे की है । तीसरा खंड पहली ढाल (राग - मल्हार, शीतल तरुवर छोय के ) देखी कामिनी दोय के, कामे व्यापियो रे, के कामे व्यापियो रे। वली घणो धन लोम के, वाध्यो पापियो रे, के वाध्यो पापियो रे ॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy