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जग जीवों पर ममता पूर्वक, अणभर भी मैत्रो भाव धरे । है पूर्ण नहीं पाया वैसा, इहमष परभव आनंद वरे ॥ हिन्दी अनुवाद सहित RAAT HAR
१६५ दें। सदा एक माला से जप करें । (५) जप किसी महा पुरुष, देव-गुरु की प्रतिमा या श्री सिद्ध स्वस्तिक यंत्र के सामने बैठ कर करें* | (७) जप करते समय माला के दानों को नख का स्पर्श न होने दें। (८) महा-मंत्र के जप मोक्ष, कर्म क्षय के लिये अंगूठे से, शांति के लिये अनामिका अंगुली और जय-विजय के लिये तर्जनी अंगुली से करें । (९) जप करते समय आदि और अंत में सात-सात बार ऊपर लिखे अनुसार दृढ़ संकल्प को पढ़ लेना चाहिए। (१०) सिद्धचक्र महा-मंत्र का अखंड जप करें। सदा मन में यह भावना रखें कि श्री सिद्धचक्र की उत्कृष्ट विधि से आराधना करने वाले धन्य हैं। मैं विवश हो इस समय केवल सिद्धचक्र महा-मंत्र का जप कर रहा हूँ । निकट भविष्य में मुझे भी उत्कृष्ट आराधना का अवसर प्राप्त हो।
धवल सेठ झुरे घj, देखी कुंवरनी ऋद्ध । एकलड़ी आव्यो हतो, है है देव शुं कीघ ॥४॥ वहाण अढी से गदा, लीना सिर देई ! जोऊँ घर किम जाय छे, ऋद्धि एवडी लेई ॥५॥ एक जीव छे एहने, ना जलधि मझार। पछी सयल ए माहरु, स्मणी ऋद्धि परिवार ॥ ६॥ देखी न शके पार की, द्धि हिये जस खार । सायर थाए दुबलो, गाजते जल धार ॥ ७ ॥ वरखाले वनराइ जे, सतु नव पल्लव थाय | जाय जवासानुं किस्यु, जे उजे उभे सुकाय ॥ ८ ॥ जे किरतारे बड़ा किया, तेशु केही रीस ।
दांत पड्या गिरि पाड़ता, कुंजर पाड़े चीस ॥ ९ ॥ ईर्पा से कुढ कुढ कर अपना जीवन न बिगाड़ें :
संसार में ईपी से कुढ़ कृढ़ कर असमय में मरने वालों की कमी नहीं । देहातों में ईर्षा का बोलबाला है । नगरों में, कल-कारखाने, औषधालय शिक्षा केन्द्रों, ओर सेठों की दुकानों में ईर्षा
की तेज छुरियां चल रही हैं। मनुष्य मनुष्य को खा रहा है। किसी ने दो पैसे कमाए, बस अड़ौसी ___ • सिद्ध-स्वस्तिक यंत्र श्री जन साहित्य कार्यालय इन्दौर [ म. प्र] से प्राप्त करें।