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समता रसमें हो लीन, त्याग, नारी सुत तन धनकी ममता । मत वश हो विषय कफायोंके, सुखो यही जो मनको
दगता ॥ हिन्दी अनुवाद सहित FREE
-MAITRA १६३ इसरे खण्ड में इसी व्रत ( नवपद-ओली) के प्रभाव से श्रीपालकुंवर ने स्थान-स्थान पर सफलता प्राप्त की है। श्रीमान् विनयविजयजी महाराज कहते हैं कि मैं भी श्री सिद्धचक्र को कोटी कोटी प्रणाम कर जनता के विशेष आग्रह से सुधा-समान मधुर श्रीपालकुंचर की समुद्र-यात्रा का वर्णन लिखता हूँ । इसे पाठक और श्रोतागण निद्रा और गप-शप का त्याग कर ध्यान से मन लगा कर सुनें ।
मंगलाचरण ( हिन्दी अनुयादकर्ता की ओर से )
सकल सिद्धि दायक सदा, यंत्र सकल सिरताज । सिद्धचक्र महायंत्र है, साधक तरन जहाज ।। आराधो इस यंत्र को, पाओ ऋद्धि अपार । न्याय कहे इस यंत्र को, वंदन हो शतवार ॥ सूरि-वर राजेन्द्र थे, सौधर्मगण सरदार । पट-धर यतीन्द्र शिष्य, न्याय लहे भव पार ॥ हे शारदे ! वरदान दे, मुनि न्याय को इस काज में । श्रीपाल, गुर्जर रास का अनुवाद लिखता आज मैं ।। "विनय-यशो” कवीन्द्र ने यह ग्रंथ लिखा है पद्य से ।
खण्ड तीन का अनुवाद हिन्दी, पाठक पढ़ें अति प्रेम से ।। प्रिय महानुभावो ! श्रीपाल-रास के दो खण्ड पढ़कर आपने श्री सिद्धचक्र यंत्र आराधना ( नवपद-ओली) करने का अवश्य प्रण कर ही लिया होगा | इस व्रत की आराधना आरंभ में कठिन अवश्य है, किन्तु सम्यग्दर्शन की विशुद्धि कर अनूटे आनन्द पाने का यह अचूक उपाय है | आप जीवन में अवश्य इस व्रत की उत्कृष्ट आराधना करें। कई स्त्री-पुरुष शारीरिक वेदना, पराधीनता, समयाभाव के कारण हार्दिक भावना होते हुए भी, श्री सिद्धचक्र यंत्र की आराधना से वंचित हैं, बेचारे मन मारकर चुप बैठ जाते हैं । निराश होना कायरता है, श्री वीतराग देव के शासन में प्रत्येक व्यक्ति आराधक बन सकता है। किन्तु चाहिये सच्ची श्रद्धा और मनो-योग ।