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नृप चक्रो अरु इन्द्रादिक के सब, इन्द्रिय सुख की जोड़ करें । समता रस अमृन सिन्धु के, एक बिन्दु को
बम होड़ करें ।। १६४ ARRER
-62र धोपाल रास एक सरल अनुभूत योग:
आप श्री सिद्धचक्र यंत्र की उत्कृष्ट आराधना करने में विवश हैं ? हां तो चिन्ता नहीं । “गोयम समयं म पमाए " " गोतम समय बड़ा अनमोल है" पाठको ! अपना एक क्षण भी व्यर्थ न गाए ।
जपात सिद्धिः जपात सिद्धिः जपात् सिद्धिः कलौ युगे। इस कलियुग में प्रत्येक कार्य की सफलता में महामंत्र का नाम-स्मरण ही एक प्रमुख साधन है। महा मंत्र :- “ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राय ह्रीं अहम् नमः।" ।
इस मंत्र के जप से अनेक स्त्री-पुरुषों ने चिन्ता अशान्ति, निराशा, दरिद्रता, शारीरिक रोगों से छुटकारा पाकर नवजीवन पाया है। आज वे आनन्द से सुख की बंसी बजा रहे हैं। महा मंत्र का जप सम्यक्त्व शुद्धि अनेक भवों की अन्तराय क्लिष्ट कर्मों को क्षय करने का एक रामबाण उपाय है । दृढ़ सकल्प करियेगा:
ब्रह्मचर्य ही जीवन है । मैं अपनी रोती सूरत बदल कर सदा हंसमुख प्रसन्न चित्त ही रहूँगा। मैं सुखी हूँ । स्वस्थ हूँ । इन्द्रियां, विषय भोग मेरे दास हैं। मैं निश्चित ही नियमित रूप से महा-मंत्र का जप करूंगा । संसार की कोई भी शक्ति मेरा अनिष्ट करने में समर्थ नहीं । दिन प्रति-दिन मेरा आत्मबल बढ़ता जा रहा है । सम्यग्दर्शन ही कल्याण का मार्ग है।
जप विधिः-किसी पंचांग में दिनशुद्धि चंद्रबल, रवियोग हो उस दिन सूर्य स्वर में आप महा-मंत्र का बड़ी श्रद्धा और मनो-योग के साथ जप आरंभ कर दें। जप प्रातःकाल सूर्योदय से पहले ही कर लेना श्रेष्ट है । यदि सुबह समय न हो तो, अपनी सुविधानुसार नियमित रूप से जप करना चाहिए | जप कितने करना ? यह आपके पुरुषार्थ पर निर्भर है । महा-मंत्र के जितने अधिक जप करेंगे, उतनी ही अधिक कर्म निर्जरा और सफलता मिलेगी। कम से कम प्रतिदिन दो माला तो गिन ही लेना चाहिए ।
रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य, दीपावली आदि प्रसंग में आरंभ कर सात, ग्यारह, इक्कीस या इकतालीस दिन में महा-मंत्र के सवालक्ष जप कर सिद्ध कर लेने से यह मंत्र अपना अद्भुत प्रभाव बताने लगता है। ___ जप करने के १० नियमः-(१) महा-मंत्र के जप किसी शांत पवित्र स्थानमें धूप दीप,
शुद्ध वख पहिन कर करें (२) जप करते समय आपका मुंह पूर्व पथिम या उत्तर दिशामें रखें (३) माला मूत, प्रवाल, मोती या चंदन की शुद्ध रखें । (४) अपनी माला किसी और को न