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ॐ अर्हनमः ॐ ह्रीं श्रीं सिद्धचक्राय नमः
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष रचयिता श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वर पारपयेभ्योनमः
श्रीपाल - रास
( हिन्दी अनुवाद सहित )
अनुवादक - श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के शिष्य मुनि श्री न्यायविजयजी तीसरा खंड
मंगलाचरण ( ग्रंथकार की ओर से )
सिद्धचक्रना गुण घणा, केहतां नावे पार | वांछित पूरे दुःख हरे, वंदु वारंवार ॥ १ ॥ सभा कहे श्रीपालने, समुद्र उतारो पार । अमने उत्कंठा घणी, सुणावा म करो वार ॥ २ ॥ कहे कवियण आगल कथा, मीठी अमीय समान । निद्रा विकथा परिहरी, सुणजो देई कान ॥ ३॥
अनेक संकटों से मुक्त हो हृदय की मनोकामनाओं को सफल करने का अचूक उपाय है, श्री सिद्धचक्र व्रत की आराधना । श्रीसिद्धचक्र के अपार गुण हैं। पहले और