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________________ सब मगल निधि यह जिस के मन, बसे अनुपम सुख पावे । मुक्ति बधू वश करे शोध, समता रस पंडित हिन्दी अनुवाद सहित BAREICALMANKRA जन ध्यावे ॥ १६१ रयण ऋद्धि परिवार, देई नृपे वहाण भर्या जी। मयणमंजूषा धूअ, बौलावा सह निसर्या जी ॥३८॥ कांठे सयल कुटम्ब, हैडा भर भेटी मल्या जी। तस मुख वारो वार, जीतां ने गेतां पाछा वल्या जी ॥ ३९ ॥ कुंवर वहाण मांहि, बेठा साथे दोय बहू जी। काम अने रति प्रीति, मलिया एम जाणे सह जो ॥ ४० ॥ बीजे खण्डे एह, ढाल थुणी इम आठमी जी । विनय कहे सिद्धचक्र नी, भक्ति करो सुर-तरु समी ॥ ४१ ॥ सम्राट् कनककेतु अपने मंत्री मंडल को साथ ले सपरिवार, बेटी-जमाई को बिदा देने बंदरगाह पर आये । श्रीपालकुंवर को उन्होंने एक सुन्दर कलापूर्ण विशाल जहाज, अनेक दास-दासियाँ, बहु-मूल्य वस्त्रालंकार आदि उपहार दिये । प्रस्थान के समय नागरिकों और मदनमंजूषा के माता-पिता की आँखों से ममता के मोतियों की झड़ी लग गई । श्रीपालकुंवर अपनी दोनों स्त्रियों के साथ कामदेव से मालूम होते थे। जनता के देखते देखते जहाज बड़ी दूर निकल गये । श्रीमान कविवर उपाध्याय श्री विनयविजयजी महाराज कहते हैं, कि श्रीपालरास के दूसरे खण्ड की यह आठवीं ढाल संपूर्ण हुई । पाठक और श्रोतागण कल्पवृक्ष सम, श्री सिद्धचक्र व्रत की सविधि आराधना कर अपना जन्म सफल करें । चौपाई खण्ड खण्ड मधुरो जिम खण्ड, श्री श्रीपाल-चरित्र अखण्ड । कीर्तिविजय वाचक थी लयो, वीजो खण्ड इम विनये कह्यो । श्रीपाल-रास का यह दूसरा खण्ड संपूर्ण हुआ । मूल ग्रंथ लेखक श्रीमान कविकर विनयविजयजी कहते हैं, कि श्रीपालकुंवर की कथा बड़ी रसीली और मधुर है । मैंने यह कथा अपने गुरुवर कीर्तिविजयजी उपाध्याय के मुंह से जैसी सुनी थी, वैसी ही श्रोता और पाठकों के समक्ष इसे सरल गुजराती मिश्र भाषा की ढालों में प्रस्तुत की है। जैसे ईख के अगले खण्डों में विशेष मधुरता बढ़ती जाती है, उसी प्रकार आप इस रास के अगले खण्डों में विशेष मधुर-रस का अनुभव करेंगे ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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