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आनन्द मय जीवन के बिना मनुष्य को की कीमत नहीं होती। १२* * *** *** ** * *******र श्रीपाल रास
(२) पित्त कारक पदार्थों के सेवन से प्रायः गर्मपात तथा बच्चों के नेत्रशरीरादि पीले पड़ जाने की संभावना रहती है।
(३) कफ कारक पदार्थों के सेवने से प्रायः बच्चे चितकबरे और पांडुरोग वाले पैदा होते हैं। भविष्य में उन्हें सफेद कोढ होने की संभावना रहती हैं।
+(४) गर्भवती स्त्री यदि अधिक नमक, खारे पदार्थ खाती है तथा आंखों में विशेष कज्जल लगाती है तो प्रायः उसके बच्चे अंधे, नेत्र रोगी होते हैं।
(५) गर्भवती गरम पदार्थ सेवन न करे। गरम पदार्थों से प्रायः बच्चे निर्बल पैदा होते हैं। गर्भवती को तेज जुलाब व दवाई न दें।
(६) गर्भवती स्त्री अधिक रुदन न करे, रोने से प्राय बच्चों की आम्बे चीपड़ी, __ अधिक गीत गान करने से प्राय. बच्चे बहरे (बधिर), अधिक बोलने से प्रायः बरचे वाचाल, अधिक हंसने से तथा अधिक गालियों की बोलार करने से प्राय बच्चे दुराचारी पैदा होते हैं।
(७) गर्भवती स्त्रियों के अधिक इंसने से प्राय: बच्चों के होठ, दांत काले हो जाते हैं । गर्भवती स्त्री के चांदनी-खुले स्थान पर सोने से प्रायः बच्चे वाडे (रावणखंडे ) पैदा होते हैं।
(८) गर्भवती स्त्री के पास किसी पतित ईर्षालु, निंदक और क्रोधी स्त्री को बैठने न दें।
(९) गर्भवती स्त्रियों को सदा प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें। उन्हें वात वान पर ___ अपमानित कर चिढ़ाना, अथवा उन्हें भयानक, चिन्ताजनक शोक ममाचार सुनाना उचित नहीं ।
(१०) गर्भवती स्त्री को आवश्यक परिश्रम और विश्राम भी अवश्य करना चाहिए |
(११) गर्भवती को छल, कपट, चुगलखोरी, चोरी, काम, क्रोध, लोभ, अहंकार __ आदि मानसिक विकारों से बचकर मन सदा पवित्र रखना चाहिये ।
(१२) गर्भवती के वस्त्र साफ स्वच्छ दीले हों। वह तेज चाल व दौड कर न चले।
(१३) गर्भवती का यदि स्वास्थ ठीक न हो तो उसे वैद्य की सम्पति विना कोई औषध न दें। (१४) गर्भवती स्त्री को प्रतिदिन आंवले का मुरब्बा बड़ा हो तो एक, छोटा हो नो दो +मति लवण नेत्र हरं, अतिशीत मारुतं प्रकोयति । अत्युष्ण हरति बलं, अति काम जोवितं हरन्ति ।
-अभिधान राजेन्द्र कोष भा. ३ पष्ठ ८६१