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मनुष्य वे हैं जो मन को शक्तियों के बादशाह हैं । ५ ५० ५१ * %
हिन्दी अनुवाद सहित ५
र ११
(२) मेरी संतान गौर वर्ण, कमल नयन, अति सुन्दर, हृष्ट पुष्ट, तेजस्वी और संयमी होगी। मेरा लाल जानी, जन मन और ध्द संकल्प एक आदर्श नररत्न होगा । (३) मेरी संतान आदर्श, सेवाभावी, पुरुषार्थी और दानवीर होगी।
( ४ ) मेरी संतान साहसी, वीर वीर और आत्मनिष्ट होकर रहेगी ।
(५) मेरी संतान अवश्य हमारे अनुशासन में रहकर, बड़े- बुढ़ों की सेवा करेगी।
आप उपरोक्त शब्दोंको हँसी मजाक न समझे, यह इच्छा शक्ति का वह चमत्कारिक जादूई मन्त्र है जो कि अधिक नहीं सिर्फ दो ढाई माह के बाद ही प्रत्यक्ष रूप से एक अनमोल निधि कुल दीपक प्रदान कर आपके मन को प्रफुल्लित कर देगा, आपके अड़ोसी पड़ोसी रोती सूरत संतान के मां बाप देखते रह जायेंगे । उक्त मंत्र कण्ठस्थ कर बार बार मनन कर अपने सोये भाग को जगाएं ।
गर्भवती भोजन कैसा करे ?
जीवन को सुरक्षित रखने के लिए भोजन एक आवश्यक वस्तु है । " जैसा खाए अभ बेसा हो मन " मनुष्य " जैसा भोजन करता है उसी प्रकार उसकी मति - गति होती हैं। खाद्यपदार्थों का पहले रस, फिर रक्त बनता है। गर्भ - स्थित जीव के लिए सब काम माता का रक्त ही करता है। यदि माता का रक्त शुद्ध और निरोग हुआ तो बालक सुन्दर, स्वस्थ और सदाचारी होगा । रक्त शुद्धि के लिए उचित भोजन, आचार, विचार की बड़ी आवश्यकता है। गर्भवती को अपने भोजन पर सदैव ध्यान रखना चाहिए | अर्थात् अधिक चरपरी, अधिक खट्टी मीठी तथा बासी तेल की चीजों को यथा संभव कम व्यवहार में लाना चाहिये। गरिष्ट और बादी कारक भोजन भी नहीं करना चाहिए। गर्भवती श्री को दाल, भात, रोटी, साग घी, फल और दूध, रुचि तथा भूख के अनुसार लेना चाहिये। अधिक भोजन न करें। गर्भवती त्रियो को चाहिये कि वे भोजन करते समय वात, पित्त और कफ कारक पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन न करें ।
*(१) वात-वादी कारक चने, आदि तथा ठण्डे पदार्थ खाने से प्रायः ब
कुहे, वामन, ठींगने और ऊँचे पैदा होते हैं ।
* बातलंश्व भवेत् गर्भः कुब्जाम्ध जड़ वामनः । वित्तले स्खलतिः पिङ्गः, शिवको गण्डुः कफात्मभिः ||