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________________ पाप आश्रय आशा फैसे, पाप पापका मूल, एक पाप के विविध फल; उपजे अप के शूल ॥ १५८ %A5% * * * श्रीपाल रास छोड़ावो तस बंध, तेड़ी पासे बेसाडियो जी। गुनहा करावी माफ, रायने पाय लगाडियो जी ॥ २४ ॥ गय कहे अपराध, एहनो परमेश्वर सहयो जी। अजरामर भयो एह, जेह तुमे बाहो अह्यो जी ॥२५॥ रंग में भंग : एक दिन श्री ऋषभदेव प्रासाद में संगीताचार्य नृत्य कर रहे थे । सम्राट कनककेतु और श्रीपालकुंवर पास ही बैठे थे। जनता कलाकार के हावभाव देख, भजन सुन, मंत्रमुग्ध हो गई । उसी समय सहसा रक्षाधिकारी के मंदिर में प्रवेश करते ही रंग में भंग हो गया। चारों और आपस में कानाफूसी होने लगी । अनुचर-महाराज! आज बंदरगाह पर एक चोर पकड़ा गया है, वह दिखने में __ तो बड़ा भला आदमी ज्ञात होता है, किंतु है महा धूर्त । 'चोरी और सीना जोरी' । बड़ा अकड़ने लगा, उसे दो हाथ बतलाना पड़े। फिर तो उसकी बोलती बंद हो गई । अपराधी को बंदी बना लिया गया है । चोर का नाम सुनते ही कनककेतु ने अकुटी चढा आंखे बदलकर कहा, रक्षाधिकारी ! 'दुष्टस्य दंडः । ऐसे धूतों को तो शीघ्र ही इसी समय प्राणदण्ड दे निर्मुल कर दें। __ श्रीपालकुंवर ने मुस्कराकर सम्राट से कहा- श्रीमान्जी ! देव मन्दिर में संकल्पविकल्प करना निषेध है। साथ ही एक पक्ष की बात सुनकर आदेश देना मी तो उचित नहीं हैं। सम्राट-कुंवरजी! 'उतावला सो बावला' सचमुच मैंने आवेश में आ बड़ी भूल की है। मंत्रीजी ! आभियुक्त को राजसभा में उपस्थित किया जाय । रक्षाधिकारी- महाराज की जय हो : बंदी उपस्थित है। कनककेतु—उसे अन्दर आने दें । कैदी की सूरत देखते ही कुंवरने अपनी हंसी को रोकते हुए सजा से कहा-श्रीमानजी ! आपको ग्राहक तो ठीक मिले। कंवर ने आगे बढ़ धवलसेठ को प्रणाम किया। पिताजी ! आपको बड़ा कष्ट हुआ। सेठ ने नीची पुष्टि कर ली। वे लज्जा से धरती खोदने लगे। बोल न सके । इधर महाराज 'पिताजी' शब्द सुन देखते रह गये । अरे ! ब्याही सगे के हाथ में हथकड़ी ? सेठ को बन्धन से मुक्त कर दिया गया । श्रीपालकुंवर ने सेठ का परिचय देते हुए कहा- आप एक कुशल व्यापारी
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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