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________________ एक पक इन्द्रिय विषय; करे राजष समार । पंचेन्द्रिय के विषय से, संकट का नहीं पार ! हिन्दी अनुवाद सहित FERR A KASHAIR १५० वस्ताची अमार, अट्ठाई महोत्सव घणो जी। सफल करे अवतार, लाहो लिये लखमी तणो जी ॥१६॥ श्रीपालकुंबर सहृदय, गुणानुरागी दानी थे। उनके द्वार से कभी कोई व्यक्ति भूखा प्यासा खाली हाथ नहीं जाता था । चत्र मास आते ही शुक्ला सातम से उन्होंने बड़ी श्रद्धा से अपनी दोनों पत्नी के साथ श्री सिद्धचक्र व्रतारंभ किया। मदनसेना, मदनमंजूषा भांति भांति की कलापूर्ण भगवान ऋषभदेव की अंग-रचनाएं करती, कुंवर भजन कीर्तन करते । उन्होंने शिक्षा प्रचार, अभयदान, औषधालय आदि परमार्थ में लाखों रुपये व्यय किये । अट्ठाई महोत्सव सानंद बड़े समारोह के साथ संपन्न हुआ। एक दिन जिनहर मांहि, कुंवर बेठा मली जी। मृत्य करावे सार, जिनवर आगल मनरली जी॥१७॥ इण अवसर कोटवाल, आवी अरज करे इसी जी। दाण चोरी चोर, पकड्यो तस आज्ञा किसी जी ॥१८|| वली भांगी तुम आण, बल बहुलं इणे आदर्यु जी। अमे देखाड्या हाथ, तम भोडं झां कर्यु जी ॥१९॥ राजा बोले ताम, दंड चोरनो दीजिये जी । जिणहर मां ए बात, कहे कुंवर किम कीजिये जी ॥२०॥ मजरे करी हजुर, पहेलां कीजे पारिखु जी। पछे देहजे दंड, सहुये न होय सारिखं जो ॥२१॥ आण्यो जिसे हजूर, धवलसेठ तव जाणियो जां। कहे कुंवर महाराज, चोर भलो तुम आणियो जो ॥२२॥ ए मुज पिता समान, हु ए साथे आवियो जी। कोटि ध्वज सिरदार, वहाण इहां घणां लावियो जी ॥२३॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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