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________________ ऐसे तन को पसिना, आत्मा का नहीं ध्यान । यही मूल में भूल है, यही घोर अज्ञान ।। १५६ AMERA-% 82%AF- र श्रीपाल रास __ आलस्य को तजकर करूंगी, सब तरह सहकार मैं । मदन अपने प्रयत्नों से तुम्हारा, कम करूंगी भार में ।। मंजूषा घर को करूंगी स्वर्ग सा, आनंद का आगार में । होगी यही बस भावना, पाऊँ तुम्हारा प्यार मैं ।। सम्राट कनककेतु ने राजकुमारी मदनमंजूषा को कन्यादान के समय हाथी, घोड़े, रथ, पालकी, दास-दासी, सोने-चांदी के बहुमूल्य वस्त्रालंकार, गादी-तकिये, पलंग आदि प्रदान किये। पश्चात् वर-वधू लग्नविधि शपथ ग्रहण संपन्न कर चंचरी से बाहिर आये । वृद्ध स्त्री-पुरुषों ने उन्हें आशिष दी। ब्राह्मण, भाट चारणों का सत्कार कर, स्त्रियां मंगल गान कर कंसार का प्रबन्ध करने लगी । Fresecxexexxseseg थाल भर कंसार का, रानी बोली श्रीपाल से । रानी मम प्रार्थना स्वीकार कर, करिये कलेवा प्रेम से ॥ रत्नमाला कंसार सदृश स-रस जीवन, सदा रहे अतिक्षेम से । संघर्ष तज संतोष से, कर्तव्य निभाना प्रेम से ॥ भए धन्यवाद दे चौले कुंवर, प्रण निभाऊँ प्रेम से । श्रीपाल प्रिय पत्नी का सहयोग पा, लेछ कर दिखाऊँ धैर्य मे ॥ फिर कवल वे देने लगे, आपस में दोनों प्रेम से । आनन्दविभोर वे हो गये, संदृश मिलन के योग से ।। वरात अपने स्थान पर लौट गई, पश्चात्, सम्राट कनकमेतु का विशेष आग्नह देख श्रीपालकुंवर बड़े आनंद से मदनसेना और मदनमंजूषा के साथ राजमहल में रहने लगे। ऋषभदेव प्रासाद, उच्छव पूजा- नित करेजी। गीत गान बहु दान, वित्त घणु वावरेजी ॥१४॥ चैत्र मासे सुख बास, आंबिल आदरे जी। सिद्धचक्रनी सार, लाविणी पूजा करे जी ॥१५।। *xx8xxcxxxxx
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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