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________________ जो आशा के दास हैं, वे सब जग के दाम । आशा जिन की किंकरी, उनके पग जग वाम १५५ - 256*-* - श्रीपाल रास आपके धन का दुरुपयोग, कण भर भी नहीं करूंगी। धन की है क्या बात, प्राण भी देकर विपत हरूंगी। तुम मेरे सौभाग्य बनोगे, और नयन के तारे । तुम मेरे सर्वस्व रहोगे जीवन के उजिहारे ॥ सत्य अहिंसा रूप और, समभाव बडाने वाला। RAMROHRIKRINASE श्रीपाल- हो जो धार्मिक कार्य, प्रेम का पाठ पड़ाने वाला || उस में बाधा कभी न दूंगा, साधन सदा करूंगा। यथा शक्ति में धर्म कार्य के, विघ्न समस्त हरूंगा ॥ XXX 5494DARISMusum + + + मदन सत्य अहिंमा का पुनीत पथ, कभी नहीं छोडूंगी। अन्ध भक्ति से रूढि राग से, प्रेम नहीं जोड्रंगी॥ सर्व धर्म समभाव सदा जीवन में अपनाऊंगी । सत्य धर्म का मर्म, मनो मन्दिर में लाऊंगी । मंजुषा RXXXSASAHE XXXXX २ कुंवर बिना तुम्हारी अनुमति पाये, कोई भी रहस्य की बात । नहीं कहूंगा कभी किसी से नहीं करूंगा हृदय-आघात। विम्ब और प्रतिविम्ब बनेंगे, दोनो के मन एक समान । दो तन एक प्राण बनकर, हम साधेगे अदेत महान् ।। XXX3XS9X4x मदनमंजूषा अनुमति बिनान प्रकट करूंगी, कोई भी रहस्य की बात । और न अपना भी रहस्य मैं, रखूगी तुमसे अज्ञात ॥ एक बने गे दोनों मिलकर, एक घाट पीवेंगे नीर । दिखने को भी रह जायेंगे, केवल अपने भिन्न शरीर॥ XXXXXXXXXXXX
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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