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________________ आत्मा बिन कुछ नहीं, क्षण भर रखे न कोय । पुत्र मित्र द्वारा सुता फू" क आगे होय ।। हिन्दी अनुवाद सहित 50₹१५३ विवाहित आनन्द को स्वर्गीय सुख की उपमा दी जाती है, किन्तु आज प्रत्यक्ष पछिल्लो का बनायम होते ही आपस में अनबन, पारिवारिक कलह, ईर्षा, आलस्य और मोह के विराट् दृश्य से मरघट सा ज्ञात होता है, इस का प्रमुख कारण है, विवाहविधि के समय पंच और पंड़ित की साक्षी से वर-वधू जो शपथ ग्रहण करते हैं, उसके रहस्य की अज्ञानता, और उचित कर्तव्य का अनादर । 7 लग्न के समय शपथ ग्रहण की जाती है, उसका स्वामी सत्यभक्तजी ने हिन्दी पद्य में बड़ा सुन्दर चित्र खींचा है । पाठक इन पद्यों का मनन- आचरण कर, श्रीपालकुंवर - मदनमंजूषा के समान अवश्य अपने जीवन को पवित्र बनाकर, फलें फूलें | * श्रीपालकुंबर और मदनमंजूषा के प्रण * मन से वचन से काय से, निज सहचरी संतोष में । पालन करूगा सर्वदा लगने न दूंगा दोष मैं | माता सुता अथवा बहिन, होगी मुझे पर कामिनी । बनकर रहोगी देवि तुम, मेरे हृदय की स्वामिनी ॥ श्रीपाल कुंवर मदनमंजूषा श्रीपाल कुंवर " मन से वचन से काय से, निशदिन स्वपति संतोष में । पालन करूंगी सर्वदा लगने न दूंगी दोष मैं ॥ यह शील ही होगा मुझे, गुण रूप पुष्पों की लता । बनकर रहोगे आर्य तुम, मेरे हृदय के देवता ॥ बिना तुम्हारी अनुमति पाये स्त्री धन देवि तुम्हारा । व्यय न करूंगा रक्षक हूंगा, यह मेरा प्रण प्यारा || तुम जीवन की ज्योति बनोगी, इस घर का उजियाला । जो पाऊंगा दूंगा तुमको, पत्र पुष्प की माला ||
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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