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________________ तन का पास्तव रूप क्या, फिमा कार यह देह । हाड चाम मज्जा रुधिर, मांस आदि का गेह ।। १५२ * 5*55555 बीपाल रास आपस में टकरा भी जायं फिर भी उनके व्यवहार और अन्तरंग स्नेह में अन्तर नहीं आता । जैसे कि श्रीफल के टुकड़े-टुकड़े होने पर भी उसकी मधुरता और स्वाद में कभी कटुता नहीं आती, इसी बात को प्रकट करने के लिये बींद को तोरण पर आते समय श्रीफल भेट करती है । फिर महारानी रत्नमाला तोरण से श्रीपाल को बधाकर अपनी सखियों के साथ मंगल गीत गाती हुई माया में स्थापना के पास ले गई और उन पर नमक उतारा । स्था वर वधू को ले गये, स्थापना के पास में । अखंड रहे सौभाग्य इन का, प्रार्थना है आप से ।। मिलकरकुवारी बालिकाएं, नमक उनपर उवास्ती। रोग शोक दूरे रहे, यह भावना मन भावती।। वर वधू को साथ ले, चवरी में आई नारियां । हो चिरायु यह युगल, आशिष दे वृद्ध नारियां ॥ चंद्रसूर्य की अब साक्षी से, कर मिलन तुम्हारा हो रहा। गृहस्थाश्रम में प्रवेश का, मंगलाचरण यह हो रहा । मिलाप चवरी के नीचे बैठकर, वराज ने यह प्रण क्रिया । सुख दुःख का मैं साथी हूं, यह वचन लो मेरी प्रिया ॥ बेटा बीबी का या बाप का बुढ़े मातापिता अपनी पुत्रवधू को पाकर सुख से दो रोटी और विशेष त्याग तप की ओर अग्रसर होने का स्वप्न देखते हैं, किन्तु जहां नववधू के घर में चरण पड़े कि मातापिता को अपनी संचित संपत्ति और पुत्र की सेवा से वंचित होना पड़ना है। उनकी सारी आशाएं मिट्टी में मिल जाती हैं। बेटा स्त्री की अंगुली के इशारे पर नाचकर, मां-बाप से विमुख हो पत्नी का बन जाता है ।।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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