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________________ बाहर सुन्दर सा दिखे, भीतर है. घिन देह । आत्मा राम नहीं रहे, करे न कोई लेह ।। हिन्दी अजान सहित २. 5F R RHEA १५१ करी अग्नि नी साख, मंगल चारे वतिया जी। 'फेग फरतां ताम, दान नरिंदै बहु दिया जी ॥ ११ ॥ केलवियो कंसार, सरस' सुगंधे महमहे जी । 'कवल ठवे मुख मांहि, मांहोमांहि मन गहगहे जी ॥ १२ ॥ 'मदनमंजूषा नारी, प्रेमे परणी इणीपरे जी। बिहुँ नारी शुं भोगे, सुख बिलसे सुसरा घरे जी ॥ १३ ॥ श्रीपालकुंवर का मदनमंजूषा के साथ विवाह : सम्राट कनककेतु बरात की वधाई सुन अपने मंत्री मंडल और प्रतिष्ठित नागरिकों को साथ ले वे बड़ी सजधज के साथ वरराज का स्वागत करने सामने गये | वर-वधू के दोनों पक्ष ने बड़े प्रेम से एक दूसरे से मिलनी की। वरराजा के तोरण पर आते ही भाद-चारण लोन नवीन दोहे सवैये बना बना कर वर-वधू के गुणयान करने लगे। ब्रह्मचारी, ब्राह्मण, आदि स्वस्तिकवाचन कर वेदमंत्रो से आशीर्वाद दे रहे थे। ढोल नगाड़े शहनाइयों की ध्वनि से, राजप्रासाद मुखरित हो उठा । गनी रत्नमाला अपनी सखियां और परिवार की सुहागिन नारियोंके साथ स्वर्ण के थाल में कुंकुम अक्षतादि ले, श्रीपाल कुवर को पोखने लगी | उनके भाल पर मंगल गीतके साथ तिलक कर उन्हें श्रीफल भेट किया। Prerancers श्रोफल खं मैं हाथ में, इसमें है पानी भम । श्रीफल प्रिय जमाई आप रखना, मन को सदा गहरा भरा ॥ महत्व श्रीफल यदि टूटे भी तो, मधुरना जीती नहीं। Xxxocexxxxx 'गिरी के स्वाद मे, कभी कहता आती नहीं ॥ गृहस्थ जीवन भी एक समस्या है। दो वर्तन हो वहां आपस में टकराने की संभावना रहती है, उसी प्रकार वरबधू की सौम्य प्रकृति के अभाव में परस्पर अनबन हो सकती है, किन्तु मनमुटाव नहीं । स्त्री की अपेक्षा पुरुष प्रधान है। उसका दिल बड़ा गंभीर और कोमल होता है। अतः वह अपने जीवन में अनबन को स्थान ही नहीं देता। यदि किसी कारणवश पनि
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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