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________________ स्वानुभूति जब तक न हो, नहीं मिले मन्मार्ग । अनुभव पंथ लगे बिना, बुझे न भव की आग १५० 8 5947-AR श्रीपाल रास सांबेला श्रीकार, सहस गमे तव पवर्या जी ॥५॥ बाजे ढोल निशान, शरणाई भुंगल घणी जी । स्थ बेसी सय बद्ध, गाये मंगल जानड़ी जी ॥ ६ ॥ साव सोनेरी साज, हयवर हीसे नाचतां जी। शिर सिंदूर सोहंत, दीसे मयगल माचतां जी ॥ ७ ॥ चहुँटे चहुँटे लौक, जुवे महोत्सव नवनवे जी । इम भोटे मंडाण, मोहन आव्या गांडवे जी ॥ ८ ॥ जिनदास ने कुंवर के विवाह की बड़े समारोह के साथ तैयारी की । लग्न के दिन श्रीपालकुंवर ने स्नान कर, सुन्दर वस्त्र पहने, भाल तिलक, गले में नवलखा हार, कानों में चमकीले हीरे के कुण्डल पहन कर सिर पर बहुमूल्य सिरपेच धारण किया, भुजबंद और हीरे की अंगूठी से वरराजा बड़े सुहावने लगते थे। कुंवर मोड़ बांध, पान खाकर घोड़ी। पर चढ़े तब सुहागिन नारियों ने मंगलगीत गाते हुए वरराज को बड़े प्रेम से विदा दी। अश्व बार-बार हिन-हिनाकर शुभ शकुन दे रहे थे। जरी के झूले, स्वर्ण की अंबाड़ियां और सिन्दूर से चित्रित मतवाले हाथी, सोने-चांदी के आभूषणों से अलंकृत घोड़े और रत्नजडित रथ पालकियों में बैठे हुए नरनारियों के साथ बरात ने बड़े ठाठ से. प्रयाण किया। चलते समय नवयुवतियों और बालिकाओं के शुभ गीत, ढोल नगाड़े, शहनाइयां और दन्दभियों से सारा नगर गूंजने लगा। ढोल-नगाड़ों का शब्द सुन स्त्री-पुरुषों के झुण्ड के झुंड चौराहे पर आने लगे। सभी बरराज श्रीपालकुवर के अनूठे रूप सौंदर्य को देख मुग्ध हो गये । स्थान स्थान पर, प्रतिष्ठित नागरिकों की ओर से वरराजा का स्वागत और दर्शकों की अपार भीड़ फूलवारी लुटाने का दृश्य बड़ा आकर्षक था। सभी लोग बड़े समारोह के साथ, सम्राट कनककेतु के महल के निकट जा पहुँचे। . . . पोखी आण्या मांहि, सासुए उलट , घणे जी। आणी चवरी मांहि, हर्ष घणे कन्या तणे जी ॥९॥ कर मेलावो कीध, वेद बांभण भणे जो। सोहव गाये गीत, बीहुँ पखें आप आपणे जी ॥१०॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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