________________
ज्ञान भानु जय प्रकट हो, लग्खे उभय का रूप । विघदे सब अन्नान तम, बने शिव मही भूप ॥ हिन्दी अनुवाद सहित NRNA
१४९ __चौरी चिहुँ पखें चीतरी, सोवन माणिक कुंभ ।।
फूल माल अति फूटरी, महके सबल सुरंभ ॥ ११ ॥
अब राजमहल ढोल, नगाडे, शहनाई, दुदभी और मंगल गीतों की स्वर लहरी से, मुखरित हो उठा है । दर्जी लोग कपड़े सीने लगे, परिवार की स्त्रियां एवं बालिकाएं गीत गाते समय अपने व्याई-सगों की चुटकियां ले ले पापड़-बदियां करने लगी । भोजनालय में घेकर फीनी, लड्ड-जलेबी, मोतीचूर, सेंव-दाल का ढेर लगने लगा | सुनार और जड़िये लोग एक से एक बढ़कर बहुमूल्य आभूषण बनाने लगे ।
विशाल बिवाव-मंडप को देख जनता मुन्ध हो गई । सुनहरी सो पर नृत्य करती रत्नजड़ित पुतलियें और रंग बिरंगी ध्वजा-पताकाएं, तोरण आदि साज-बाज बड़े आकर्षक थे, लोग झुण्ड के झुण्ड देखने आते थे । सुनहरी छतों पर लटकते मोती के झुमके तारे-से चमकते थे मानों उत्सव की संकीर्णता देख तारागण व सप्तर्षि ने नववधू को आशीर्वाद देने को छतों पर विश्राम लिया हो । सुन्दर चित्रित चवरी स्वर्ण कलश और सुगन्धित बरमाला वरराज की प्रतिक्षा कर रही थी ।
दुसरा खण्ड-ढाल आठवीं
(राग-खंभायती करडो तिहां कोटवाल ) हवे श्रीपालकुमार, विधि पूर्वक मजन करे जी। पहरे सवि शृंगार, तिलक निलाड़े शोभा धरे जी ॥१॥ सिर सुणालो खूप, मणि-माणेक मोती जड्यो जी! हसे हीराने तेज, जाणे हूं नृप शिर चड्यो जो ॥२॥ काने कुण्डल दोय, हार हैये सोहे नवलखो जी । जड्या कंदोरे स्तन, बांहे बाजुबंद बेरखां जी ॥३॥ सोवन बीटी वेढ, दश आंगुलीये सोहियेजी। मुख तंबोल सुरंग, नर नारी मन मोहिये जी ||४|| कर धरी श्रीफल पान, वरघोडे जव संचर्या जी।