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________________ दर्शन बान स्वरूप चित, आत्मा शुद्ध स्वरूप । संधिर मांस मय देह में दीखत है रद रूप ।। हिन्दी अनुवाद सहित R RRRRRRRRRRRR १४७ (१) इस कुंवर ने उज्जैन नरेश प्रजापाल की पुत्री मयणासुंदरी के साथ विवाह कर, श्रीसिद्धचक्र व्रत के प्रभाव से ही असाध्य कुष्टरोग से छुटकारा पाया। (२) विद्यासाधक योगी को प्रोत्साहन दे, उनके वर्षों के कार्य . को मिनटों में कर दिखाया । । (३) धवलसेठ के स्तंभित पांचसौ जहाजों को तिराया । (४) बबरकूल में महाकाल राजा को जीत कर उनकी कन्या मदनसेना . के साथ पाणिग्रहण किया। (५) अपने इष्ट स्मरण और दृढ़ संकल्प से आज प्रत्यक्ष ऋषम चैत्य के द्वा-उद्घाटन का चिर स्मरणीय सुयश प्रप्त किया है। श्री सिद्धचक्र भगवान की जय । (धन्यवाद और तालियों की ध्वनि से सभा-भवन मुखरित हो उठा।) मुनि कुंबर का परिचय दे, आकाश मार्ग से प्रस्थान कर गये | उपस्थित श्रोताओं ने बड़ी श्रद्धा से नत-मस्तक होकर मुनि को वंदन कर अपना स्थान ग्रहण किया । सम्राट कनककेतु मदनमंजूषा के भाग्य की सराहना करते हुए फलेन समाये । श्रीमान विनयविजयजी महाराज कहते हैं कि यह श्रीपाल-रास के दूसरे खण्ड की सातवीं ढाल संपूर्ण हुई । प्रिय पाठक और श्रोतागण भी श्री सिद्धचक्र व्रत की सुन्दर आराधना कर, श्रीपालकुंबर के समान सुखसमृद्धि प्राप्त करें । . . . . . ... दोहा बेठा जिणहर बारणे, मुख मंडप सहु कोय । कुंवर निरखी रायन, हैई हरखित होय ॥ १ ॥ धन रिसदेसर कल्पतरु, धन चक्केसरी देवी। । जास पसाये मुज फल्यां, मनोवांछित,तत खेकी ॥ २॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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