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________________ आत्मा है तन से पृथक, एक समझना भूल । तन जड़ चेतन आत्मा, तन में रहो न फूल | १४६ARSANSAR श्रीपाल रास बदला लेने की भावना आग से भी अधिक उग्र और भयानक है । इस आग ने हजारों स्त्री-पुरुषों की नींद, रक्त और भूख-प्यास को नष्ट कर उन्हें निधन, कंगाल बना डाला । आज वे बेचारे अपना मुंह लपोड़ कर चुपचाप बैठे हैं। ___ आप शक्ति संपन्न, श्रीमंत हैं, तो शोषणवृत्ति और हिंसा को अपने पास न फटकने दें। मातापिता अपने परिवार के वृद्धजनों की सेवा सुश्रूषा, जनसेवा, साहित्यसेवा, स्वाध्याय ध्यान और आत्मचिंतन को स्थान दें। अपने जीवन को पवित्र महान् मंगलमय बनाएं | स्वास्थ्य से :-सवास्थ्य की चटक मटक में आप मतवाले बन विषयभोग के कीट न बनें । " देहस्य सारं व्रत धारण च" नर भव में रूप-सौंदर्य और आरोग्यता का सार है परोपकार, जप-तप कर अपना आत्मकल्याण करना। विषयभोग में आसक्ति का होना पतन है, तो त्याग मानव के अभ्युदय का एक राजमार्ग है। " त्याग तप के साधन हैं। उनमें विशिष्ट और अति सरल साधन है श्रीसिद्धचक्र आराधन । यह तप साढ़े चार वर्ष तक केवल वर्ष में दो बार आश्विन शुक्ला और चैत्र शुक्ला सप्तमी से पूर्णिमा पर्यंत नौ नौ दिन तक होता है। अशुभ कर्मों का क्षय और जीवन को प्रगतिशील बनाने का यह व्रत रामबाण उपाय है। इस व्रत की साधना से ही श्रीपालकुंवर ने प्रत्यक्ष स्वास्थ्य विपुल वैभव और स्थान-स्थान पर सुयश प्राप्त कर जनता को चकित कर दिया है। . . विद्याचारण मुनि का हृदयस्पर्शी प्रवचन सुन व्याख्यानसभा मुग्ध हो गई । कई लोगों ने महाराजश्री से पूछा, गुरुदेव ! श्रीपालकुंवर इस समय कहां विराजते हैं ? विद्याचारण मुनि के मुखारविंद से श्रीपालकुंवर का , संक्षिप्त परिचय मुनि ने कहा, महानुभावो! "जो जाके हृदये बसे सो ताहि के पास" आपके नयन जिस व्यक्ति के दर्शन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, वह भाग्यवान दूर नहीं (अंगुली से श्रोपाकुंलवर की ओर संकेत कर) देखियेगा! आप ही चंपानगरी के सम्राट सिंहस्थ के सुपुत्र श्रीपालवर हैं।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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