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गोरख धन्धा जगत है, फंस जाते हैं लोग। एक मार्ग उद्धार का, धरो योग तजो भोग || हिन्दी अनुवाद सहित I
R RIGARASHTRA १४५ निःस्वार्थ सेवा और सत् शास्त्रों का स्वाध्याय कर बड़ी तेजी से आगे बढ़े हैं ! आपके पास धन है ? बुद्धि है ? बल और स्वास्थ्य-आरोग्यता है ? तो आज से अपनी व्यर्थ की कृपणता, मुर्दादिली, आलस्य और प्रमाद को मार भगाएं । हृदय से निकाल दें।
धन से - अपने असहाय पिछड़े हुए भाई-बहिनों को उचित सहाय व उन्हें धार्मिक शिक्षण देकर आगे बढाएं। जिनालयों के जिर्णोद्धार और सद्ग्रन्थो के प्रकाशन में पुष्कल धन दे उदार भावों से हाथ बटाएं ।
दृढ़ संकल्प करियेगाः
आज से मैं धरा, धन और पराई धरोहर का अधिपति नहीं किन्तु एक व्यवस्थापक हूँ। अब मैं निश्चित ही मोह ममता से बचकर अपना निस्पृह जीवन विताऊंगा ।
बुद्धि से:-भेद विज्ञान का अनुशीलन करें । अर्थात् वास्तविक आनन्द सुख-शांति का सूर्योदय तब होगा, जब कि आप हृदय से यह निर्णय कर लेंगे कि यह आत्मा और शरीर दोनों एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं। अब मैं इन भौतिक जड़ पदार्थों की क्षणिक चकाचौंध में न लड़खड़ा कर अपना अधिक से अधिक अनमोल समय आत्मचिंतन में ही यापन करूँगा। सुख-दुःख यह तो एक शुभ-अशुभ कर्मों का विकार मात्र है । मैं तो सच्चिदानन्द आनन्दी हूँ।
भेद विज्ञान होने पर आपके जीवन में दुःख नाम की कोई वस्तु शेष न रह जायगी । __ इस संसार की कोई भी शक्ति आपके मन को लुभा न सकेगी। आप जगत् के कृत्रिम प्रकाश से ऊपर उठकर एक दिव्य ज्योति का दर्शन और अनूठे आनन्द का अनुभव करेंगे।
आनन्द का अर्थ विषय-भोग, कुंभकर्णीय निद्रा के खर्राटे और पराम भोजन नहीं । आनन्द का अर्थ है, इच्छाओं का निरोध, राग-द्वेष की मन्दता, ईर्षा का अभाव, सदेव, स्वाध्याय और आत्मचिंतन में लीन रहना ।
बल से:--किसी भी व्यक्ति से बदला लेने की भावना न रखें । "क्षमा वीरस्य भूषणम् " आज प्रतिवर्ष हजारों स्त्री पुरुष परस्परआपस में क्षमा प्रार्थना करते हैं, किन्तु हृदय से नहीं | मुंह से खमत-खामणा कर, हृदय में शल्य, (छल) कपट और दुर्भाव रखना अनेप आपको ठगना है । दूसरे, के अपराध को क्षमा करने की अपेक्षा उसे सर्वथा हृदय से भूल जाना ही सच्ची वीरता है ।