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________________ जहां तृष्णा वहां दासता, विषय दासता पाप । संतोषामृत पान से, मिटे सकल संताप ।। १४०१HART** * ** *२ श्रीपाल रास दीठो कुवर जिन पूजतोजी, केशर कुसुम घनसार रे। चैत्यवंदन चित्त उल्लसेजी, स्तवन कहे इम सार रे ।। कुं० ॥४॥ दीठी नंदन नाभिनरिंदनी रे, देव नौ देव दयाल रे । आज महोदय में लह्योजी, पाप गया पायाल रे ।। कुं० ॥५॥ देव.पूजी ने कुंवर आवियाजी, रंग मंडप मांहि जाम रे ।। राय सज्जन ने पवर्याजी, बैग करिय प्रणाम रे ॥ कुं० ॥६॥ 卐 दृढ़ संकल्प का चमत्कार ॥ आत्मा में अपार शक्ति और अतुल बल है। इसका विकास और उपयोग करना भी एक कला है। इसका साधन है इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प । यदि आप विश्वविख्यात मानव, लोकप्रिय नेता, प्रकाण्ड विद्वान और श्रीमंत बनना चाहते हैं, तो अपनी इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प को ठोस बनाए । वर्ष में आठ हजार, छ: सौ चालीस घण्टे होते हैं। यदि आप प्रतिदिन केवल पंदरह मिनिट भी अपनी इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प का प्रयोग आरम्भ कर दें तो निःसंदेह अति अल्प समय में ही आपको अपूर्व आनन्द और अनूठी सफलता प्राप्त होगी। इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प के बल से आप जितना काम और पापका क्षय एक दिन और एक श्वास में कर सकते हैं, दूसरे व्यक्ति उसे अनेक भव, वर्ष, मास और सप्ताह में भी नहीं कर सकते हैं । हलवे का स्वाद जीभ से ही होता है, तर्क और बातों से नहीं। जनता की प्रत्यक्ष करारी हार देख, श्रीपालकुबर को जरा भी भय-संकोच नहीं हुआ। ओह ! जब कि इतने मानव मन्दिर का द्वार न खोल सके तो भला मुझसे क्या होगा ? मैं अकेला कर ही क्या सकूँगा ? मुझे भी उल्टे मुंह की खाकर वापस लौटना पड़ेगा। हृदय में मुर्दे विचारों को स्थान देना भयंकर अपराध और कायरता है। कायर रोती सूरत स्त्री पुरुष इस भूतल पर भारभूत हैं। श्रीपालकुंवर कायर, डरपोक व्यक्ति नहीं वे पुरुषार्थी थे। उन्होंने इष्ट, श्री सिद्धचक्र का स्मरण कर तीव्र इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प से भगवान से प्रार्थना की ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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