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________________ ___अन्त समय नहीं काम दे, धन धरणी चल धाम । स्वार्थ हेतु रोवे जगत, आवे एक न काम IT १३८1987- %%*56 श्रीपाल रास दोहा तब हरखे कुंवर भणे, धवलसेठ ने तेडी। जईये देव जुहाखा, आवो दुर्मति फेड़ी ॥१॥ सेठ कहे जिनवर नमो, नवरा तमे निर्चित । विण उपराजे जेहनी, पहोंचे मननी खंत ॥ २ ॥ अमने जमवानी नहीं, घड़ी एक पवार । सीरामण वालु जीमण, करिये एकज वार ।। ३ ।। हवे कुंवर जावा तिहां, जव थाए असवार । हरख्यो हेषारव करे, तेजी ताम तुखार ॥ ४ ॥ श्रीपालकुंबर ने जिनदास के साथ प्रस्थान करते समय धवलसेठ से कहा, महानुभाव ! मैं यहां निकट ही रत्नसंचया जा रहा हूँ। आप साथ चलेंगे ? वहां श्री ऋषभदेव स्वामी का एक भव्य विशाल मंदिर है। दर्शन करके अभी वापस लौट आएंगे। दर्शन का नाम सुन, सेठ का सिर ठनकने लगा, उन्होंने कहा, अजी दर्शन करें या अपना धंधा ? यहां तो हमें सुबह से शाम तक भोजन करने तक का अवकाश नहीं। बड़ी कठिनाई से दिन में एक बार दो टुकड़े पेटमें पड़ते हैं। इसे आप कलेवा समझें या भोजन । देव-दर्शन तीर्थयात्रा तो वह करे जिसे कि लक्ष्मी घर बैठे तिलक करने आए । आप पधारें, खुशी से ठंडे ठंडे कौन मना करता है। कुंवर बड़े शान्त और गम्भीर थे उन्होंने सेठ की मूर्खता पर ध्यान न दें। वे तो चुपचाप घोड़े पर सवार हो चलने लगे । मार्ग में अश्च बार बार हिन-हिना कर उन्हें विजयश्री की सूचना देता हुआ बड़े वेग से आगे बढ़ता चला जा रहा था । साथे लई जिनदास ने, अवल अवर परिवार । अनुक्रमे आव्या कुंवर, ऋषभदेव दरबार ॥ ५॥ एकेको आवो जई, सहु गंभारा पास । कुंवर पछी पधारशे, इम बोले जिनदास ॥ ६ ॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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