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यह संसार असार है, इसमें नहीं कुछ सार । सार समझ इसमें रमे अन्तिम रस है क्षार ॥ हिन्दी अनुवाद सहित এশএ% এ6
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सुणी नाद नाटक तणोजी, देखण आव्यो जाम । दरिसण दीरुं ताम ॥ प्रभु० ॥ २७ ॥
मनमोहन प्रभु तुम तणोजी,
जाणु देवी चक्केसरी जी. जिणहर बार उघडतांजी,
तुम आण्यो अम पास | फलशे सहुनी आश || प्रभु० ॥ २८ ॥
बीश ॥ प्रभु० ॥ २९ ॥
पूज्य पधारो देहरे जी जुहारो श्री जगदीश । उघडशे ते वारणां जी, जाणु विसवा बीजे खण्डे इणी परेजी, सुणतां छट्ठी विनय कहे श्रोता घरे जी, हो जो मंगल माल || प्रभु० ॥ ३० ॥
ढाल |
श्रीमान्जी ! नगर में घर-घर चारों ओर भविष्यवाणी की चर्चा होने लगी । जैसेजैसे दिन बीतने लगे, वैसे ही जनता में अधिक कौतुक बढ़ने लगा । प्रत्येक नागरिक जानना चाहता था कि राजकुमारी का भावी वर कौन होगा ?
अभी तक कोई ऐसा नर-रत्न हमें दिखाई नहीं दिया जो कि हमारे सम्राट की मनोकामना सफल कर सके | आज सुबह मुझे ज्ञात हुआ कि रत्नद्वीप बंदरगाह पर सैकड़ों जहाज आये हैं। अतः कौतुकाश मैं भी घूमता फिरता इधर आपकी सेवा में यहां आ पहुँचा। आपका विनम्र स्वभाव और संगीत का कार्यक्रम देख मुझे बड़ी खुशी हुई। संभव है जगदम्बा देवी चक्रेश्वरी ही आपको खींच कर यहां लाई हैं ।
मेरा आप श्रीमान् से सादर अनुरोध है कि आप शीघ्र ही इसी समय रत्नसंचय नगरी में पधारकर श्री ऋषभदेव स्वामी की यात्रा का अवश्य लाभ लें। अब भविष्यवाणी में शेष केवल एक ही दिन रहा है। अतः मेरी अन्तरात्मा बार-बार पुकार कर कह रही है, कि जिन मंदिर के द्वार उद्घाटन का सुयश शत प्रतिशत आपको ही मिलेगा ।
श्रीपालकुंवर जिनदेव सेठ के सुपुत्र जिनदास से अद्भुत घटना का परिचय पाकर बड़े चकित हो गये । श्रीमान् विनयविजयजी महाराज कहते हैं कि यह श्रीपालरास के दूसरे खण्ड की छडी दाल संपूर्ण हुई। इस रास के पाठक और श्रोताओं के घर सदा ही आनंद मंगल होवे ।