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________________ जग की वस्तु अनित्य लस्य, करो न मन अमिमान । नहीं आज की वस्तु कल. मत्र या है अवमान || १३२ -- ARENAERAKAKAR श्रीपाल रास खेल समाप्त हुआ । कुबर ने मुस्कराते हुए जिनदास से कहा, श्रीमान्जी ! धन्यवाद । आज आपने बड़ी कृपा की । कहियेगा मेरे योग्य कोई सेवा ? श्रीमान् कहां से पधार रहे है ? दुसरा खण्ड-दाल छट्ठी (राग-झाझरिया भुनिवर धन धन तुम अवतार तेह पुरुष हवे वीनवेजी, रत्नदीप ए सुरंग । रतनसानु पर्वत इहां जी, वलयाकार उनंग ।। प्रभु ! चित्त धरीने, अवधारो मुज वात ॥१॥ स्तनसंचया तिहां से जी, नयरी पर्वत मांह । कनककेतु राजा तिहां जी. विद्याधर नग्नाह ।। प्रभु० ॥ २ ॥ रतन जिसी रलियामणिजी, रतनमाला तस नार। सुम्सुन्दर सोहामणाजी, वंदन छे तस चार ।। प्रभु० ॥ ३ ॥ ते उपर एक इच्छतां जी, पुत्री हुई गुणधाम । रूपकला रति आगली जी, मदनमंजूषा नाम ।। प्रभु ॥४॥ पर्वत शिर सोहामणाजी निहां एक जिन प्रासाद । गय पिताए करावियोजी, मेरुसुं मंडे वाद ॥ प्रभु० ॥ ५॥ सोवनमय सोहामणा जी, तिहां रिमहेसर देव । कनककेतु राजा तिहांजी, अहनिश सारे सेव ॥ प्रभु०॥ ६ ॥ भक्ते भली पूजा करे जी, राजकुंवर्ग त्रण काल । अगर उखेवे गुण स्तवेजी, गावे गीत रसाल ॥ प्रभुः ॥ ७ ॥ जिनदास ने श्रीपालकुंबर से कहा श्रीमानजी ! धन्यवाद । आज आप के विनम्र स्वभाव और दर्शन से मुझे बड़ा सन्तोष हुआ। मेरी आप में एक प्रार्थना है, कि इस रत्नद्वीप के निकट लम्बगोल रत्नसानु पर्वत पर एक अति सुन्दर धन-धान्य स परिपूर्ण रत्नसंचया नगरी है। यहां सम्राट विद्याधर कनककेतु राज्य करते हैं। उनकी पटरानी का नाम रत्नमाला है। वास्तव में बह एक रत्न ही है।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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