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________________ यह संसार अनित्य है, अरु परिवर्तनशोल | चहल जायेंगे एक दिन कुछ जल्दी कुछ ढील । १३० 1964-36-64 * श्रीपाल रास दोहा दाण बलावी वस्तुनां, भरी अनेक वखार | व्यापारी व्यापारनों, उद्यम करे अपार || १ ॥ लाल किनायत जरकसी, चंदखा चोसाल । ऊँचा तंबु ताणिया, पंचरंग पटशाल ॥ ५॥ सोवन पट मंडप तले, स्वण हिंडोला खाट । तिहां बेठा कुंवर जुए, रस भर नव रस नाट || ३ ॥ धवलसेट आवी कहे, वस्तु मूल्य बहू आज | ते वेचावो कां नहीं, भर्या अढीसो जहाज ॥ ४ ॥ कुंवर पभणे सेठ ने घड़ो वस्तुना दाम | अवर वस्तु विणजो वली, करो अमारू काम ॥ ५ ॥ काम भलान्युं अम भले, हरख्यो दुष्ट किराड । आरत ध्याने जिम पढ्यो, पामीं दूध बिलाड ॥ ६ ॥ श्रीपालकवर और धूर्त धवलसेठ : श्रीपालकुंबर जहाज से उतर कर वे अपने अनुचरों के साथ सीधे डेरे पर पहुँचे । उनके ठहरने के तम्बू बड़े सुन्दर ढंग से सजाये गये थे । स्थान-स्थान पर रंग-बिरंगी छतें, सुनहरी पड़दे, सिंहासन और रत्नजड़ित झूलों आदि की शोभा देख बंदरगाह के स्त्री-पुरुष चकित हो गये। सभी मुक्त कण्ठ से श्रीपाल कुंवर की प्रशंसा कर, कहने लगे, धन्य है ! यह पुण्यवान बड़ा सुखी है "सुखी वही है, जिसका जीवन नियमित और सदा निरोगी है" कुंवर सदा अपने भजन पूजन व्यायाम आदि दैनिक कार्यक्रम से निवृत्त हो, कभी नाटक देखते, कभी सत्संग करते, कभी झूला झूलते थे । धवलसेट को यह बात बड़ी अखरी । वे कुछ कर मन ही मन बड़बड़ाने लगे । अरे ! आज इतना अच्छा बाजार चल रहा है, फिर भी यह छोकरा चुप-चाप बैट
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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