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________________ पूर्व दिशा अब न रद्दी, वर्तमान क्या बात । क्षण भर का भी नहीं पता, बने दिवस की रात ॥ हिन्दी अनुवाद सहित * १२९ धवलसेठ के तन में आग लग गई -: आग से जला मानव आज नहीं कल स्वस्थ हो पनप सकता है, किन्तु मान, बड़ाई, ईर्षा से दग्य स्त्री-पुरुषों की वैद्य धन्वतरी और ब्रह्मा के पास भी दवा नहीं । ईर्षा महा भयंकर एक ठण्डी आग है । इस आग ने एक नहीं हजारों मानत्रों की दिव्य मानसिक शक्ति को अन्दर ही अन्दर जला कर राख कर दिया। ईर्षा करना मानो अपने दीपक से ही अपने घर में आग लगाना है । धवलसेठ भी इस आग से बच न सके। मदनसेना के नूपुर की झंकार, श्रीपाल की विपुल संपत्ति देख, सेठ मन ही मन कुढ़ने लगे। हाय ! हाय !! इस भले आदमी ने मुझे कंगाल बना, बात की बात में मेरे अढ़ाई सो भरे-पूरे जहाज हथिया लिये । कल मेरे साथ खाली हाथ आया था, आज बेटा मेरे बराबरी का बन बैठा । सचमुच समुद्र यात्रा इसी को फली हैं। मैंनें तो बच्चरकूल पर उतर कर केवल भाड़ झोंकी है। मुझे तो " लेने से देना भारी पड़ गया " इन्धन ( लकड़ी) और जल के बदले उलटे मुंह लटकना पड़ा । अब इस कुंवर से भाड़े की रकम पटाना है। क्या पता दे या अंगूठा बता दे ? नवयुवक ठहरा | श्रीपालकुंवर बड़े उदार, दयालु थे, वे धवलसेठ को जरा ऊंचा नीचा होते देख, उसी समय उनके मन की बात ताड़ गये। उन्होंने बिना कहे, सेठ को अपने पास बुला कर बड़े प्रेम से उनका जितना किराया था उससे दसगुनी अधिक रकम सेठ के हाथों पर रख दी। सेठ भी देखते रह गये । जहाज की मंद गति देख लोगों को ज्ञात हुआ कि रत्नद्वीप आ रहा है। सभी लोग अपने इष्टदेव का स्मरण कर कहने लगे, कि सागर में बड़ा तूफान था, भाग्य से ही आज अपन सकुशल रत्नद्वीप आ पहुँचे हैं, जैसे कि जैनधर्म के प्रभाव से नर भव का प्राप्त होना । जहाज चालकों ने लंगर डाल अपनी पालें उतारी। व्यापारी लोग जहाज से उतर कर बंदरगाह की और चढ़ने लगे । श्रीमान् विनयविजयजी महाराज कहते हैं, की श्रीपालरास के दूसरे खण्ड की यह पांचमी ढाल सम्पूर्ण हुई। जैसे कि श्रीपालकुंवर ने अपने भुजबल और प्रबल पुण्योदय से सहज ही विपुल संपत्ति और सुयश प्राप्त किया है, उसी प्रकार इस रास के श्रोता और पाठकगण भी श्री सिलचक्र की आराधना कर अतुल सुख समृद्धि और सम्यक्त्व - रत्न प्राप्त करें ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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