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________________ जय विनाश वेला निकट, तब हो मति विपरीत । तुलि मुला इस्ट द. कोन्टिय माप जन !! १२६ ॐॐॐIN-RRORI श्रीपाल रास (३) देशना लब्धिः विशुद्धि लब्धि के प्रभाव से तत्वों के प्रति रुचि उत्पन्न होती है, और उन्हें जानने की इच्छा होती है-यह देशना लब्धि है । (४) प्रयोग लब्धि देशनालब्धि प्राप्त करने के बाद जीव अपने परिणामों को शुद्ध करता है। आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों को कुछ कम एक कोड़ा कोड़ी सागरोपम की स्थिति वाले कर लेता है और कर्मों के तीव्र अनुभाग को मन्द करता है- यह प्रयोग लब्धि है। (५) करण लब्धि आत्मा के परिणाम को करण कहते हैं। करण तीन है । यथा प्रवृत्ति करण, ___ अपूर्व करण और अनिवृत्ति करण | (१) यथा प्रवृत्ति करण-प्रयोग लब्धि से सात कर्मों की स्थिति को कुछ कम एक कोड़ा कोड़ी सागरोपम की कर देने वाले आत्मा के परिणामों में विशेष शुद्धि होना यथा प्रवृत्ति करण कहलाता है। यह करण अभव्यजीवों को भी होता है। (२) अपूर्व करण-यथा प्रवृत्ति करण के बाद परिणामों में और विशेष शुद्धि होती है। जिस कारण अनादि कालीन राग द्वेष की बड़ी मजबूत ग्रंथि को भेदने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। और ग्रंथि भेद कर भी डालता है । ऐसा पहले कभी नहीं किया अतः इसे अपूर्व करण कहते हैं। (३) अनिवृत्ति करण-अपूर्व करण के बाद और विशेष शुद्धि होना अनिवृति करण कहलाता है । इस करण के करने से सम्यक्त्व प्राप्त होता है । सम्यक्त्व तीन हैं। [१] औपशमिक सम्यक्त्व-- यथा प्रवृत्ति करण से कर्मों की कुछ कम एक कोड़ा-कोड़ी सागरोपम की स्थिति करने पर अपूर्व करण में ग्रंथि-भेद करने पर और मिथ्यात्व का उदय न होने पर अनिवृत्ति करण द्वारा प्रथम जो सम्यक्त्व होता है, वह औपशमिक समकित है। जैसे:
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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