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________________ पानी से नीर बने, मनको रमता अन्न । खाना पीना शुद्ध यदि, आत्मा सदा प्रसत्र ॥ १२४HA HARASHTRA श्रीपाल राम महानुभाव ! आप समझते हैं कि जैन सिद्धांत ही रात्रि भोजन को घातक मानता है ऐसी बात नहीं । पुराण रचयिता मार्कण्डेय ऋषि ने भी भारपूर्वक स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिर मुच्यते । अन्न मांस सम प्रोक्त, मार्कण्डेय महर्षिणां ॥ रे मानव ! तुझे दुनिया में चार दिन जोना है ? तो तू स्वप्न में भी रात्रि-भोजन न कर । सूर्यास्त के बाद अन्न और जल ग्रहण करना रक्त और मांस के समान है। रात्रि-भोजन के मोह से कई स्त्री-पुरुषों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा है। वास्तव में वही हुआ। कुछ समय बाद वर-राजा और उनके प्रिय मित्रों का सिर चकराया और वे लोट-पोट हो गये। रंग में भग हो गया। शीघ्र ही चारों ओर कोलाहल मच गया, जनता का हृदय कांप उठा । पुलिम आई। वंद्य आये। किन्तु टूटी को बूटी नहीं। खोज करने से पत्ता चला कि केतली की नली में एक छिपकली का छोटा सा बच्चा था, वह चाय के साथ उबल जाने से वर-राजा और उसके मित्रों की मृत्यु हो गई। मदनसेना-माताजी! आपका कहना ठीक है । एक बार मेरी माथिन मी मरते-मरते बची। उसके जल-पान में कोई ऐसा कीट आ गया कि उस के हाथ-पैर-मु ह-आंख-कान साने पारीर पर सूजन __ आ गई थी। अब मैं आज से आजन्म रात्रि-भोजन न करूंगी। बेटी! -इसी में कल्याण है। रानी-मदनसेना ! अब समय अधिक हो गया है। अब तक मैंने तुम्हें गहस्थाश्रम की कुछ बातें बतलाई हैं। अब तुम्हें एक सक्षिप्त अति महत्त्वपूर्ण बात और बतला दू। बेटी ! जो तुम्हारा है, वह कभी तुमसे अलग नहीं हो सकता । जो वस्तु तुमसे अलग हो जाती है या हो सकती है, वह तुम्हारी नहीं है । पर-पदार्थों के साथ आत्मीयता का भाव स्थापित करना महान भ्रम है। इसी भ्रम का नाम है मिथ्यात्व | आज इसी मिथ्यात्व अज्ञान दशा के कारण संसार अनेक कष्टों से पीड़ित है। अगर मैं और मेरी मिथ्या घारणा मिट जाय तो जीवन में सहज ही एक प्रकार का दिव्य प्रकाश, अपूर्व आनन्द, निस्पृहता और अद्भुत शांति प्राप्त हो सकती है। ___ इस जीवात्मा ने भव-भ्रमण करते हुए अनेक बार पुत्र कलत्र (स्त्री) राज-पाट, धन-दौलत, हाथी घाड़े पाये, अगर अनेक जन्म में किसी वस्तु की कमी रही है, तो एक मात्र शुद्ध-सम्यक्त्व की, सम्यक्त्व के अभाव में दान-शील, जप, तप अध्ययन आदि प्रत्येक कार्य संसारवर्धक हैं। कमों __ से मुक्त होने की सर्व प्रथग सोपान (सीढ़ी) है सम्यक्त्व ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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