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________________ प्रजा सुगुण निर्माण हिल, इन्द्रिय संयम यत्न । इन्द्रिय संयम के बिना, सारे व्यर्थ प्रयत्न || हिन्दी अनुवाद सहित শশ *** १२३ सात गांव वाले संताप, वरस दिवस माछीनुं पाप । अण-गल पाणी एक दिन पिये, एटलं पातिक अंगे लिये ॥ क्षणिक स्वाद से हानिः रानी - मदनसेना ! आलू, मूला, गाजर, कांदा (प्याज) लहसन, शकरकंद, तालु, मांस, मदिरा, मद (शहद) मक्खन आदि अभक्ष - अनंतकाय ये तामसिक पदार्थ हैं। महा पुरुष ज्ञानी गीतार्थो का अभिप्राय है कि इन उत्तेजक पदार्थों के सेवन से मानव को क्षणिक स्वाद के बदले भवान्तर में अनंती चार छेदन-भेदन दरिद्रता आदि घोर यातनाएं सहना पडती हैं, अतः अभक्ष - अनंतकाय को भी अपने निकट न आने दो। द्वि-दल- कच्चे दूध-दही के साथ तुवर, चने, चचले, मटर आदि की दाल मिला कर न खाना चाहिये । रात्रि - भोजन से हानि रानी - मदनसेना ! स्वास्थ्य और सिद्धांत की अपेक्षा रात्रि को भोजन बड़ा घातक है । भोजन में कीड़ी, जूं, इयल, लट, कुत्तों की बर्गे, बाल, कांटा, बिच्छु के अवयव आदि खाने में आने से बुद्धि का नाश, पागलपन, जलोदर, कुष्ठरोग, स्वरभंग, गले में जलन होने लगती है। रात्रि में भोजन कर खाट या बिस्तर पर पड़ जाने से अजीर्णादि रोग होने की सम्भावना रहती हैं। भोजन करने के बाद देरी से या फिर सुबह बासी बर्तन साफ करने से अनेक जीवों की हिंसा होती है । रात्रि का भोजन त्याग न होने से प्राणान्त कष्ट भोगना पड़ता है । प्रत्यक्ष उदाहरण रानी - मदनसेना । अभी कुछ दिन पहले एक जमींदार के बेटे की शादी थी। कई लोग उसकी बराते में गये थे । उनमें एक जैन नवयुवक था। उसे रात्रि भोजन का कड़क नियम था । लग्न का समय रात को दो बजे का था । अतः सभी बरातो खा-पीकर नींद के खर्राटे ले रहे थे । बड़ी कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थो। कुछ वरराजा के प्रमुख साथी ताश्च पत्ते खेलने में मस्त थे । एक ने आलस मोड़ते हुए कहा, अब तो सुस्ती आतो है । उसो समय वरराजा ने अपने नौकर को पुकारा और कड़क बाय का आदेश दिया । नोकर ने आँखें मलते हुए खटिया से उठ कर एक केतली में पानी डाल कर शीघ्र ही उसे ढक कर वधकते हुए अंगारों पर रख दी। दूसरे सज्जन उठे और उन्होंने अपने हाथों से केतली में घाय, शक्कर केशर डाल कर शीघ्र हो उसे छान कर प्याले भरे, फिर तो आपस में एक दूसरे की मनवार होने लगो । साथ हो चाय पीते समय वे लोग जैन धर्म और जैन युवक की हंसी-दिल्लगी भी करने लगे । जन युवक न रहा गया। उसने बड़े शांत भाव से अपने मित्रों से कहा ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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