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________________ धर्मभावना के बिना बिगड़ रही सब सृष्टि । भारत का दुर्भाग्य जो उधर न जाति दृष्टि ॥ हिन्दी अनुवाद सहित 6966 6% %এ१२१ रजस्त्राव का ज्ञान होते ही स्त्रियों वो बड़े शान्त भाव से किसी एकान्त स्थान में बंठ मन ही मन भगवान का मरण कविता करना चाहिये। दिसी भी पदार्थ का स्पर्श न करें । अपने पतिदेव, बीमार स्त्री-पुरुष और पवित्र वस्तुओं पर अपनी परछाई (छाया) न पहने दें। किसी से भाषण न करें, भूमिशयन करें। मासिक धर्म के दिनों में घस-पस, गडबड़ करने से परिवार और जीवन पर उसका बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता है । आचार-मुरब्बे सड़ जाते हैं, पापड़ अपना रंग बदल देते हैं । ऋतुधमं वाली स्त्रो की गड़बड़ी से कई छोटे छोटे बच्चों की आंखें चली जाती हैं । Easthai और महिलाएं ॠतुधर्म के समय रोजाना स्नान कर पुस्तकें पढ़ती हैं, भोजन, बनाती हैं। कपड़े सीना, कशीदा निकालना, गेहूं, चने आदि धान्य साफ करना, बैलों को घास डालना, दूध दुहना, बर्तन साफ करना आदि कार्य करने लगती हैं, यह धर्म और स्वास्थ्य के विरुद्ध है । मासिकधर्म की असावधानी के कारण आज अनेक लडकियाँ, महिलाएं प्रत्यक्ष प्रदर, हिस्टीरिया, पागलपन, वंध्यत्त्र ( बांझ ) डाकण चूड़ेल आदि रोगों का शिकार बन वर्षों से दुःख पा रही है । तपागच्छीय शिवराज के पुत्र खीमचंद ने घोल गाँव में वि. सं. १८६५ कार्तिक वद अमावस्या को, ऋतुवंती स्त्री की सज्झाय में स्पष्ट कहा है -- * वेदपुराण कुरानमां रे, श्री सिद्धान्तमां भाख्यं । ऋतुवंत दोष घणो कह्यो रे, पंचागे पण दाख्युं || मदनसेना ! वास्त में ऋतुधर्म के समय प्रमाद करने से वर्षों तक इसका कटु-फल भोगना पड़ता है, अत: बडी सावधानी से रहना चाहिए। साथ ही चौथे दिन स्नान कर सर्व प्रथम अपने भर्तार के ही दशन करें। यदि पतिदेवकी अनुपस्थिति हो, तो अपने इष्टदेव "दर्पण" या सत्पुरुषों के चित्र का दर्शन करना विशेष हितकर है। ऐसा विद्वानों का अभिप्राय है । भोजनालय : - मदनसेना ! भोजन बनाने की एक कला है । जो लड़की इस कला को नहीं जानती है, वह स्वयं अपने और परिवार के स्वास्थ्य तथा मान-प्रतिष्ठा से हाथ धो बैठती है । भोजन स्वयं अपने हाथों से स्वास्थ्यप्रद और स्वादिष्ट बनाना चाहिये। कई घरों में नौकर और नौकरानी से भोजन बनाने की प्रथा बढ़ती जा रही है। यह उचित नहीं । नौकर के हृदय में विवेक और प्रेम नहीं। उस तो एक मात्र अपने उदर-पोषण के लिये विवश हो, जाना काम कर, बेगार टालना है । स्त्री के हृदय में सदा अपने पति देव, बालबच्चे और परिवार के स्वास्थ्य और कल्याण को कामना है । अतः उस के लिये हाथ का बना हुआ विशुद्ध साधारण भोजन भी स्वादष्टि मोर स्वास्थ्यप्रद होता है | * यह सझाय ७० गाथा की है इसे अवश्य पदे ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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